कृषि - 8% ज्यादा बजट मिला कृषि और संबद्ध क्षेत्रों को वित्त वर्ष 24 के मुकाबले. यह 1.41 लाख करोड़ रु. से बढ़कर 1.52 लाख करोड़ रु. हो गया
उपज के अच्छे दाम मिलने की बात पक्की करने के लिए एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर कानूनी ढांचे की मांग कर रहे उत्तर भारत के किसान संगठन भले ही अगले चरण के विरोध प्रदर्शन के लिए कमर कस रहे हो लेकिन केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इससे पूरी तरह बेफिक्र नजर आईं. वित्त वर्ष 2024-25 के लिए कृषि बजट आवंटन से साफ है कि भाजपा नीत सरकार 2021-22 में अपनाए रास्ते को बदलने के मूड में नहीं है, जिसमें पोस्ट-फार्मगेट इकोसिस्टम (फसल बाजार में आने के बाद के परिदृश्य) मजबूत करना और बाजार की कीमतों के साथ ज्यादा छेड़छाड़ न करना शामिल है.
पिछले पांच वर्षों में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में करीब 4.2 फीसद की वार्षिक औसत वृद्धि दर्ज की गई. यह पिछले चार दशकों में किसी भी अवधि के दौरान सबसे कम है. देश के किसान जीडीपी में 18.2 फीसद योगदान देते हैं और करीब 42 फीसद आबादी कृषि पर निर्भर है. इसके बावजूद कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के प्रति केंद्र की तरफ से सौतेला व्यवहार किए जाने की शिकायत हमेशा रही है (अब यह शिकायत और बढ़ जाएगी क्योंकि 2023-24 के अंतरिम अनुमान दर्शाते हैं कि कृषि क्षेत्र ने 1.4 फीसद की मामूली दर से वृद्धि की, जो 2022-23 के 4.7 फीसद की तुलना में बेहद कम है). यही किसान यूनियनों के असंतोष का सबसे बड़ा कारण है और सरकारी खर्च के माध्यम से इसका कोई हल निकालना बजट निर्माताओं के लिए किसी जटिल पहेली से कम नहीं.
बजट पेश होने के अगले ही दिन यानी 24 जुलाई को पंजाब और अन्य राज्यों के किसान यूनियन नेताओं नेता विपक्ष राहुल गांधी से संसद में उनके दफ्तर में मुलाकात की. उद्देश्य यही था कि सत्ता पक्ष पर दबाव बनाया जा सके. हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनाव में भाजपा को उत्तर भारत के कई राज्यों के अलावा महाराष्ट्र के विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्र में भी किसानों की नाराजगी का खामियाजा भुगतना पड़ा है.
Diese Geschichte stammt aus der 7th August, 2024-Ausgabe von India Today Hindi.
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