अपनी किताब अगेंस्ट ऑल ऑड्स में मैंने भारतीय आइटी उद्योग की अनूठी कहानी बयान की है. 1950 के दशक के मध्य में देश में महज एक कंप्यूटर होने से लेकर आज हमने दुनिया की आइटी राजधानी होने का लंबा सफर तय किया है. इस उद्योग ने 2024 में 250 अरब डॉलर (21 लाख करोड़ रुपए) का राजस्व कमाया और देश के जीडीपी में 7-8 फीसद का योगदान दिया. ज्यों-ज्यों हम आत्मविश्वास भरे कदमों से नए डिजिटल युग में आगे बढ़ रहे हैं, इस डिजिटल अर्थव्यवस्था के विस्तार की उज्ज्वल और अपार संभावनाएं हैं. मैं पांच ऐसे स्तंभों की चर्चा करूंगा जो इस वृद्धि को टेका लगा सकते हैं:
1. राजस्व बढ़ाने के अवसरः पहला स्तंभ आइटी सेवाओं और इंजीनियरिंग आरएंडडी में भारत की मौजूदा शक्ति का लाभ उठाने और उसे बढ़ाने पर जोर देता है. जब जेनरेटिव एआइ, 6जी और इंडस्ट्रियल मेटावर्स सरीखी नई से नई टेक्नोलॉजी प्रमुखता से सामने आ रही हैं, बिजनेस सिस्टम को इन उभरती टेक्नोलॉजी के प्रतिमानों के साथ जोड़ने और स्थानांतरित करने के मौके जबरदस्त हैं. कुछ विश्लेषकों के मुताबिक, एआइ से वैश्विक अर्थव्यवस्था में 157 खरब डॉलर (1,318 लाख करोड़ रुपए) की बढ़ोतरी होने की उम्मीद है, और वैश्विक जीडीपी 2030 तक 14 फीसद बढ़ सकता है. भारत में हम कंपनियों को डेटा क्यूरेशन और क्लीनजिंग के इर्द-गिर्द नई सेवाएं गढ़ते और वैश्विक ग्राहकों के लिए मशीन लर्निंग ट्रेन करने की एल्गोरिदम तैयार करते देख रहे हैं. इसी से जुड़ी दूसरी सेवाओं में कंटेंट पोस्ट करने और उसकी निगरानी करने और भौगोलिक तथा क्षेत्र का विस्तार करने की सेवाएं शामिल हैं.
इस विस्तारों को सहारा देने के लिए नीतिगत सुधार जारी रहने ही चाहिए जिनमें विशेष आर्थिक जोन (एसईजेड), सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क (एसटीपी) और नई सेवाओं, शाखाओं और स्टार्ट-अप के लिए श्रम कानूनों की मदद शामिल है. आखिर में लंबे समय तक निवेश आकर्षित करते रहने के लिए हमें स्थिर और प्रत्याशित नीतिगत माहौल बनाए रखना चाहिए.
Diese Geschichte stammt aus der August 28, 2024-Ausgabe von India Today Hindi.
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