बदलाव की पुकार पूरे भारत में जोर-शोर से गूंज रही है और शिक्षा से लेकर कृषि तक अनेक क्षेत्रों में जनकेंद्रित सुधारों और योजनाओं के सूत्रपात की मांग कर रही है. मगर अगस्त 2024 के इंडिया टुडे देश का मिज़ाज सर्वे के उत्तरदाता सुधारों का तो स्वागत करते हैं, साथ ही तीन नए आपराधिक कानूनों सरीखे कुछ निश्चित बदलावों को लेकर खासे चौकन्ने हैं और नियंत्रण तथा संतुलन की मजबूत व्यवस्था की तरफदारी करते हैं. कई सारी भर्ती और प्रवेश परीक्षाओं पर सवालिया निशान लगाने वाला पेपर लीक का प्रेत बुरी तरह मंडरा रहा है. देश का मिज़ाज सर्वे से पता चलता है कि सबसे व्यापक धारणा - 28.2 फीसद - यह है कि पेपर लीक के इस साल हुए मामलों के लिए सबसे पहले केंद्र सरकार जिम्मेदार है और उसके बाद वे प्राधिकारी जिन्हें ये परीक्षाएं आयोजित करने का काम सौंपा गया (21.2 फीसद) 18.8 फीसद जितने ज्यादा उत्तरदाता मानते हैं कि राज्य सरकारें जिम्मेदार हैं जबकि 13.3 फीसद प्रश्नपत्र तैयार करने और बांटने की प्रक्रिया में शामिल लोगों को दोषी मानते हैं. महज 7.3 फीसद को पेपर लीक के पीछे किन्हीं संगठित गिरोहों की भूमिका का शक है.
एक बात परेशान करने वाली है. और वह यह कि पिछले आठ देश का मिज़ाज सर्वेक्षणों में शामिल आधे से भी कम उत्तरदाता मानते हैं कि भारत महिलाओं के लिए पहले से ज्यादा सुरक्षित हुआ है. दरअसल, इस बार महज 42.3 फीसद ने ऐसा कहा जो फरवरी 2023 के सर्वे के 43.1 फीसद उत्तरदाताओं से थोड़े ही कम हैं. यह जिक्र करना जरूरी है कि ताजातरीन सर्वे कोलकाता के आर. जी. कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में 31 वर्षीया प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ बर्बर बलात्कार और हत्या के मामले के बाद महिला सुरक्षा पर छिड़ी राष्ट्रीय बहस से पहले किया गया था. अन्य 37.9 फीसद उत्तरदाताओं को लगता है कि भारत महिलाओं के लिए कम सुरक्षित हो गया है, जबकि 15.7 फीसद का कहना है कि हालात जस के तस हैं जो लैंगिक संवेदनशीलता और न्याय सुनिश्चित करने के मामले में कायम चुनौतियों का प्रमाण है.
Diese Geschichte stammt aus der September 04, 2024-Ausgabe von India Today Hindi.
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