यहां हम स्टुडेंट्स प्रोडक्शन के छोटे शो करेंगे, 60-70 की ऑडियंस के बीच; (फर्स्ट फ्लोर पर) इस हॉल फर्स्ट ईयर की क्लास चलेगी... यह होगा हमारा साउंड स्टूडियो... यह बड़ा हॉल सेकंड ईयर की क्लास का... लगा हुआ मेकअप रूम; (छत से नीचे दिखाते हुए) वह हमारे ब्लैकबॉक्स ऑडिटोरियम की नींव और खड़ा हो रहा ढांचा.” भोपाल के पॉश इलाके बाणगंगा चौराहे से लगे यही कोई डेढ़ एकड़ में फैले अलाउद्दीन खां संगीत और कला अकादमी के परिसर की बूढ़ी इमारत उसी पर खड़े होते नए ढांचे के इंटीरियर को, अगले महीने 50 के हो रहे टीकम जोशी किंचित जज्बाती होकर नैरेट कर रहे हैं. उनके पास इसकी वजह है. उनके पिता कभी यहीं मध्य प्रदेश उर्दू एकेडमी के मुलाजिम हुआ करते थे. मां ने भारत भवन रंगमंडल कलाकारों का खाना बनाया-खिलाया. शहर से निकलकर दिल्ली और थिएटर की दुनिया में बड़ा नाम बनने के बाद उन्हीं की संतान अब फिर भोपाल में प्रदेश के प्रतिष्ठित मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय (एमपीएसडी) के निदेशक के रोल में नई पहल, नए प्रयोग कर रहा है.
भारत भवन में अभी पिछली शाम (24 अगस्त) उसी प्रयोग का एक नमूना सामने था. विद्यालय से ही निकले 15 छात्रों को लेकर शुरू रंग प्रयोगशाला (थिएटर लैब) के तहत तैयार पांच नाटकों के फेस्टिवल की एक प्रस्तुति थी. लगातार हो रही बारिश के बावजूद रंजीत कपूर के लिखे और निर्देशित थ्रिलर राँग टर्न को देखने 250 से ज्यादा दर्शक (कई तो छाता लेकर) पहुंचे थे.
Diese Geschichte stammt aus der September 25, 2024-Ausgabe von India Today Hindi.
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