कश्मीर में यह खुशहाली का मौसम है. धान के लहलहाते सुनहरे खेत, कटाई के लिए तैयार पकी फसलें, बीच-बीच में साफ-सुथरी कतारों में पसरी केसर की गांठें. श्रीनगर से पुलवामा जिले तक के 50 किमी लंबे राजमार्ग के किनारे-किनारे फलों से लदे सेब के बगीचे. हिमालय के शांत और धूसर पहाड़ों से घिरे रंग-बिरंगे खूबसूरत नजारे, चमचमाता नीला आसमान और उसके नीचे तैरते झक-सफेद बादलों के गुच्छे. सिर्फ कुदरत ही नहीं है जिसने घाटी में उम्मीदों और संभावनाओं के रंग घोल दिए हैं. लोकतांत्रिक और राजनैतिक बदलाव की बयार ने भी फिलहाल जम्मूकश्मीर को अपने आगोश में ले लिया है. दस साल के लंबे अतंराल के बाद यहां चुनाव जो हो रहे हैं. जम्मू की 43 और कश्मीर की 47 यानी कुल 90 सीटों की विधानसभा के लिए चुनाव 18 सितंबर से 1 अक्तूबर तक तीन चरणों में करवाए जा रहे हैं. नतीजे 8 अक्तूबर को हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों के साथ आएंगे.
त्राल में भविष्य का फैसला अब खून-खराबा और बंदूकें नहीं बल्कि मतपेटियां और सियासतदां करेंगे, जो गहरी दिमागी माथापच्ची में उलझे हैं. यह वही त्राल है जो अलगाववादी संगठन हिज्बुल मुजाहिदीन के प्रमुख और जवानी में मौत के मुंह में चले गए बुरहान वानी का गृहनगर है. 2016 में सुरक्षा बलों के साथ गोलीबारी में वानी की मौत से उग्रवाद का भीषण दौर शुरू हुआ था, जिसमें 90 लोगों की जान गई थी. उस अशांत दौर में तत्कालीन राज्य की कमान मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के हाथ में थी, जिनकी सरकार 2018 में गिर गई. काफी नरम पड़ चुकी वही महबूबा अब त्राल के मुख्य बस अड्डे पर रैली कर रही हैं, जो सवारियों के लिए हल्ला मचाती सफेद टैक्सियों से ठसाठस भरा है. महबूबा पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष हैं, जिसने 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ गठबंधन किया था और जिसका अंत चार साल बाद कटुता के साथ रिश्ते टूटने में हुआ.
Diese Geschichte stammt aus der 2nd October, 2024-Ausgabe von India Today Hindi.
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