वृन्दावन में ज्ञान हारा और भक्ति जीती!
Jyotish Sagar|August 2022
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष
रेखा कल्पदेव
वृन्दावन में ज्ञान हारा और भक्ति जीती!

वृन्दावन में एक स्थान ऐसा है, जहाँ 'ज्ञान हारा और भक्ति जीती। इस प्रसंग ने लोकमानस में यह बिठाया कि ज्ञानार्जन से अधिक ज्ञानानुभव महत्त्वपूर्ण होता है। बुद्धि से ज्यादा भावनाएँ प्रमुख होती हैं। मस्तिष्क से अधिक दिल की बात सुननी चाहिए। इस स्थान को 'ज्ञान गूदड़ी' कहते हैं। लोक में यह प्रसंग 'उद्धव-गोपी संवाद' के रूप में जाना जाता है। भक्तिकालीन कवियों ने इस प्रसंग से यह स्थापित किया कि भगवत्प्राप्ति का सबसे सहज और सरल मार्ग भक्ति का है। शास्त्रों-पुराणों में यह प्रसंग नाम मात्र है। महाकवि सूरदास ने इस प्रसंग को विस्तार दिया।

अनेक वर्षों बाद जगद्गुरु शंकराचार्य ने भी 'भज गोविंद, भज गोविंद मूढ़मते' गाकर स्थापित किया कि भगवान् को पाने का ज्ञानमार्ग से ज्यादा सहज भक्तिमार्ग है। बात उस समय की है जब कृष्ण गुरु संदीपन के यहाँ ज्ञानार्जन के लिए गए थे, तब उन्हें ब्रज की याद सताती थी। वहाँ उनका एक ही मित्र था उद्धव। वह सदैव ज्ञान-नीति की, निर्गुण ब्रह्म और योग की बातें करता था। श्रीकृष्ण का उद्धव से परिचय मथुरा में हुआ। उद्धव प्रत्येक सन्दर्भ में नीतियों का सहारा लेते। परिणामस्वरूप उनसे बात करने वाला निरुत्तर रह जाता। उनके गहन अध्ययन और विद्वता से प्रभावित लोग उन्हें देवताओं के गुरु बृहस्पति का शिष्य मानते। पहले परिचय में ही उद्धव ने अपनी ज्ञानपूर्ण बातों से श्रीकृष्ण को प्रभावित किया। कृष्ण को यह अनुभूति थी कि उद्धव को ज्ञान का गर्व है।

Diese Geschichte stammt aus der August 2022-Ausgabe von Jyotish Sagar.

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बारहवाँ भाव : मोक्ष अथवा भोग
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किसी भी जन्मपत्रिका के चतुर्थ, अष्टम और द्वादश भाव को 'मोक्ष त्रिकोण भाव' कहा जाता है, जिसमें से बारहवाँ भाव 'सर्वोच्च मोक्ष भाव' कहलाता है। लग्न से कोई आत्मा शरीर धारण करके पृथ्वी पर अपना नया जीवन प्रारम्भ करती है तथा बारहवें भाव से वही आत्मा शरीर का त्याग करके इस जीवन के समाप्ति की सूचना देती है अर्थात् इस भाव से ही आत्मा शरीर के बन्धन से मुक्त हो जाती है और अनन्त की ओर अग्रसर हो जाती है।

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रामजन्मभूमि अयोध्या
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रात के सप्तमोक्षदायी पुरियों में से एक अयोध्या को ब्रह्मा के पुत्र मनु ने बसाया था। वसिष्ठ ऋषि अयोध्या में सरयू नदी को लेकर आए थे। अयोध्या में काफी संख्या में घाट और मन्दिर बने हुए हैं। कार्तिक मास में अयोध्या में स्नान करना मोक्षदायी माना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहाँ भक्त आकर सरयू नदी में डुबकी लगाते हैं।

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जीवन प्रबन्धन का अनुपम ग्रन्थ श्रीमद्भगवद्गीता
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यह सर्वविदित है कि महाभारत के युद्ध में ही श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था। यह उपदेश मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी (11 दिसम्बर) को प्रदत्त किया गया था। महाभारत के युद्ध से पूर्व पाण्डव और कौरवों की ओर से भगवान् श्रीकृष्ण से सहायतार्थ अर्जुन और दुर्योधन दोनों ही गए थे, क्योंकि श्रीकृष्ण शक्तिशाली राज्य के स्वामी भी थे और स्वयं भी सामर्थ्यशाली थे।

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नवांश से सम्बन्धित 'वर्गोत्तम' अवधारणा से तो आप भली भाँति परिचित ही हैं। इसी प्रकार की एक अवधारणा 'पुष्कर नवांश' है।

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सत्साहित्य के पुरोधा हनुमान प्रसाद पोद्दार
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प्रसिद्ध धार्मिक सचित्र पत्रिका ‘कल्याण’ एवं ‘गीताप्रेस, गोरखपुर के सत्साहित्य से शायद ही कोई हिन्दू अपरिचित होगा। इस सत्साहित्य के प्रचारप्रसार के मुख्य कर्ता-धर्ता थे श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार, जिन्हें 'भाई जी' के नाम से भी सम्बोधित किया जाता रहा है।

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जो मनुष्य मेरे द्वारा स्थापित किए हुए इन रामेश्वर जी के दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएँगे और जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ाएगा, वह मनुष्य तायुज्य मुक्ति पाएगा अर्थात् मेरे साथ एक हो जाएगा।

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