![नवांश से फलकथन के सिद्धान्त](https://cdn.magzter.com/1382621400/1667048268/articles/St6RtDlMr1667391348591/1667391808665.jpg)
कलत्र-सौख्यादि नवांश लग्नात् ॥
अर्थात् नवांश लग्न से कलत्रसुख (दाम्पत्य जीवन) आदि का विचार किया जाता है। यही उक्ति सप्तवर्गी जन्मपत्रियों में नवांश कुण्डली के नीचे छपी रहती है। इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि नवांश का उपयोग केवल दाम्पत्य जीवन की शुभाशुभता आँकने के लिए ही किया जाता है, बल्कि सत्य तो यह है कि नवांश का उपयोग फलित ज्योतिष के प्रत्येक क्षेत्र में किया जाता है, जिसमें दाम्पत्य जीवन भी सम्मिलित है। सभी प्राचीन एवं अर्वाचीन ग्रन्थों में ज्योतिष के सभी क्षेत्रों के लिए अनेक ऐसे योग एवं सूत्र भरे पड़े हैं, जो नवांश वर्ग पर आधारित हैं, चाहे वह वर्ण-रंग-रूप का क्षेत्र हो, चाहे सन्तान, व्यवसाय, मृत्यु का प्रकार, दाम्पत्य जीवन या राजयोग का क्षेत्र हो।
जीवन के प्रायः सभी प्रमुख क्षेत्रों के विचार के साथ-साथ ग्रहों के शुभाशुभ एवं बलाबल का भी विचार नवांश से किया जाता है। नवांश कुण्डली से फलादेश करने के प्रमुख नियम एवं सिद्धान्त के निम्नानुसार हैं :
1. ग्रहों- भावेशों की शुभाशुभता का विचार करने के लिए नवांश में उनकी स्थिति निम्नलिखित के आधार पर देखी जाती है :
(i) उनकी नवांश राशिगत स्थिति और उससे उनके सम्बन्ध। उच्च, मूलत्रिकोण, स्व एवं मित्र नवांश में ग्रह बली एवं शुभ फलदायक होता है, वहीं इसके विपरीत नीच एवं शत्रु नवांश में उसके शुभत्व में कमी आ जाती है। यदि लग्न कुण्डली में ग्रह उच्चराशि में है, परन्तु नवांश में वह नीच नवांश में है, तो उस स्थिति में उसके शुभ फल प्राप्त नहीं होते। इसके विपरीत यदि ग्रह जन्मकुण्डली में नीच राशि में है, परन्तु नवांश में वह उच्च नवांशगत है, तो उसके अशुभ फल प्राप्त नहीं होते। उसकी नीचराशिगत स्थिति की अशुभता में काफी हद तक कमी आ जाती है।
Diese Geschichte stammt aus der November 2022-Ausgabe von Jyotish Sagar.
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![एकादशी व्रत का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1718785/wx1Dd0-dn1717490549774/1717490752361.jpg)
एकादशी व्रत का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण
व्रत और उपवास भारतीय जनमानस में गहरे गुँथे हुए शब्द हैं। 'व्रत' का अर्थ होता है, 'संकल्प हैं। लेना' अर्थात् अपने मन और शरीर की आवश्यकताओं को नियंत्रित करते हुए स्वयं को संयमित करना।
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पवित्र दिवस है गंगा-दशहरा
गंगा दशमी न केवल पूजा-पाठ और अध्यात्म तक सीमित रहना चाहिए वरन् इसके साथ-साथ हमें गंगा नदी के संरक्षण और गंगा जल जैसे पक्षों पर शोध की दिशा में भी आगे बढ़ना चाहिए।
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मनोचिकित्सा से आरोग्य लाभ
आरोग्य की दृष्टि से शारीरिक रोगों के साथ-साथ मानसिक व्याधियों की भी मुख्य भूमिका रहती है।
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हनुमान् 'जयन्ती' या 'जन्मोत्सव'?
मूल रूप से 'जयन्ती' शब्द ' जन्मदिवस' या 'जन्मोत्सव' के रूप में प्रयुक्त नहीं होता था, परन्तु श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के एक भेद के रूप में कृष्ण जयन्ती से चलते हुए यह शब्द अन्य देवी-देवताओं के जन्मतिथि के सन्दर्भ में भी प्रयुक्त होने लगा।
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पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा करतारपुर साहिब और नवनिर्मित कोरीडोर-टर्मिनल
आखिर ऐसा क्या है कि इतना प्रसिद्ध तीर्थस्थल होने के बाद भी गुरुद्वारा करतारपुर साहिब में जाने वाले दर्शनार्थियों की संख्या जैसी उम्मीद की गई थी, उसकी तुलना में हमेशा ही बहुत कम रहती है।
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शनि साढ़ेसाती और मनुष्य के जीवन पर प्रभाव
ज्योतिष शास्त्र अति प्राचीन काल से जाना जाता है। सिद्धान्त, संहिता तथा होरा नामक तीन स्कन्धों से युक्त इसे 'वेदों का नेत्र' कहा गया है। वैसे तो वेद के दो नेत्र होते हैंस्मृति और ज्योतिष।
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गोचराष्टक वर्ग से शनि के गोचर का अध्ययन
यदि ग्रह गोचराष्टक वर्ग में 4 या अधिक रेखाओं वाली राशि पर गोचर कर रहा है, तो जिन-जिन कक्षाओं में उस राशि को शुभ रेखाएँ प्राप्त हुई हैं, उन कक्षाओं के स्वामी ग्रह के जन्मपत्रिका में भावों और नैसर्गिक कारकत्वों से सम्बन्धित शुभफलों की प्राप्ति होती है।
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सप्तर्षि और सप्तर्षि मण्डल
प्रत्येक मनु के काल को मन्वन्तर कहा जाता है। प्रत्येक मन्वन्तर में देवता, इन्द्र, सप्तर्षि और मनु पुत्र भिन्न-भिन्न होते हैं। जैसे ही मन्वन्तर बदलता है, तो मनु भी बदल जाते हैं और उनके साथ ही सप्तर्षि, देवता, इन्द्र आदि भी बदल जाते हैं।
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अजमेर की भगवान् नृसिंह प्रतिमाएँ
विधानानुसार नृसिंहावतार मानव एवं पशु रूप धारण किए, शीश पर मुकुट, बड़े नाखून, अपनी जानू पर स्नेह के साथ प्रह्लाद को बिठाए हुए है। बालक प्रह्लाद आँखें मूँदे, करबद्ध विनम्र भाव से स्तुति करते प्रतीत हो रहे हैं।
![सूर्य नमस्कार से आरोग्य लाभ](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1679328/vHJD203bs1714473957430/1714474112917.jpg)
सूर्य नमस्कार से आरोग्य लाभ
सूर्य नमस्कार की विशेष बात यह है कि इसका प्रत्येक अगले आसन के लिए प्रेरित करता है। इस क्रम में लगातार 12 आसन होते हैं। इन आसनों में श्वास को पूरी तरह भीतर लेने और बाहर निकालने पर बल दिया जाता है।