![कैसे करें महामृत्युंजय मन्त्र साधना और प्रयोग](https://cdn.magzter.com/1382621400/1676109758/articles/Tzg3CNmBe1676464314299/1676464706230.jpg)
महामृत्युंजय मन्त्र भगवान् शिव का सबसे बड़ा मन्त्र माना जाता है। हिन्दू धर्म में इस मन्त्र को प्राणरक्षक और महामोक्षप्रदायक मन्त्र कहा जाता है। मान्यता है कि 'महामृत्युंजय मन्त्र से शिवजी को प्रसन्न करने वाले जातक से मृत्यु भी डरती है। इस मन्त्र को सिद्ध करने वाला जातक निश्चित ही मोक्ष को प्राप्त करता है। यह मन्त्र ऋषि मार्कण्डेय द्वारा सबसे पहले पाया गया था। भगवान् शिव को कालों का काल ‘महाकाल' कहा जाता है। मृत्यु अगर निकट आ जाए और आप महाकाल के महामृत्युंजय मन्त्र का जप करने लगे, तो यमराज की भी हिम्मत नहीं होती है कि वह भगवान् शिव के भक्त को अपने साथ ले जाए।
इस मन्त्र की शक्ति से जुड़ी कई कथाएँ शास्त्रों और पुराणों में मिलती है, जिनमें बताया गया है कि इस मन्त्र के जप से गम्भीर रूप से बीमार व्यक्ति स्वस्थ हो गए और मृत्यु के मुँह में पहुँच चुके व्यक्ति भी दीर्घायु का आशीर्वाद पा गए। यही कारण है कि ज्योतिषी और पण्डित बीमार व्यक्तियों को और ग्रह दोषों से पीड़ित व्यक्तियों को महामृत्युंजय मन्त्र जप करवाने की सलाह देते हैं। शिव को अति प्रसन्न करने वाला मन्त्र है 'महामृत्युंजय मन्त्र। लोगों की धारणा है कि इसके जप से व्यक्ति की मृत्यु नहीं होती, परन्तु यह पूरी तरह सही अर्थ नहीं है।
‘महामृत्युंजय' का अर्थ है 'महामृत्यु पर विजय' अर्थात् व्यक्ति की बार-बार मृत्यु नहीं हो। वह मोक्ष को प्राप्त हो जाए। उसका शरीर स्वस्थ हो, धन एवं मान की वृद्धि तथा वह जन्म-मृत्यु के बन्धन से मुक्त हो जाए। महामृत्युंजय मन्त्र यजुर्वेद के रुद्राध्याय का एक मन्त्र है। इसमें शिव की स्तुति की गई है। शिव को ‘मृत्यु को जीतने वाला' माना जाता है। कहा जाता है कि यह मन्त्र भगवान् शिव को प्रसन्न कर उनकी असीम कृपा प्राप्त करने का माध्यम है। इस मन्त्र का सवा लाख बार निरन्तर जप करने से आने वाली अथवा मौजूदा बीमारियाँ तथा अनिष्टकारी ग्रहों का दुष्प्रभाव तो समाप्त होता है। इस मन्त्र के माध्यम से अटल मृत्यु तक को टाला जा सकता है।
Diese Geschichte stammt aus der February 2023-Ausgabe von Jyotish Sagar.
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![एकादशी व्रत का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1718785/wx1Dd0-dn1717490549774/1717490752361.jpg)
एकादशी व्रत का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण
व्रत और उपवास भारतीय जनमानस में गहरे गुँथे हुए शब्द हैं। 'व्रत' का अर्थ होता है, 'संकल्प हैं। लेना' अर्थात् अपने मन और शरीर की आवश्यकताओं को नियंत्रित करते हुए स्वयं को संयमित करना।
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पवित्र दिवस है गंगा-दशहरा
गंगा दशमी न केवल पूजा-पाठ और अध्यात्म तक सीमित रहना चाहिए वरन् इसके साथ-साथ हमें गंगा नदी के संरक्षण और गंगा जल जैसे पक्षों पर शोध की दिशा में भी आगे बढ़ना चाहिए।
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मनोचिकित्सा से आरोग्य लाभ
आरोग्य की दृष्टि से शारीरिक रोगों के साथ-साथ मानसिक व्याधियों की भी मुख्य भूमिका रहती है।
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हनुमान् 'जयन्ती' या 'जन्मोत्सव'?
मूल रूप से 'जयन्ती' शब्द ' जन्मदिवस' या 'जन्मोत्सव' के रूप में प्रयुक्त नहीं होता था, परन्तु श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के एक भेद के रूप में कृष्ण जयन्ती से चलते हुए यह शब्द अन्य देवी-देवताओं के जन्मतिथि के सन्दर्भ में भी प्रयुक्त होने लगा।
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पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा करतारपुर साहिब और नवनिर्मित कोरीडोर-टर्मिनल
आखिर ऐसा क्या है कि इतना प्रसिद्ध तीर्थस्थल होने के बाद भी गुरुद्वारा करतारपुर साहिब में जाने वाले दर्शनार्थियों की संख्या जैसी उम्मीद की गई थी, उसकी तुलना में हमेशा ही बहुत कम रहती है।
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शनि साढ़ेसाती और मनुष्य के जीवन पर प्रभाव
ज्योतिष शास्त्र अति प्राचीन काल से जाना जाता है। सिद्धान्त, संहिता तथा होरा नामक तीन स्कन्धों से युक्त इसे 'वेदों का नेत्र' कहा गया है। वैसे तो वेद के दो नेत्र होते हैंस्मृति और ज्योतिष।
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गोचराष्टक वर्ग से शनि के गोचर का अध्ययन
यदि ग्रह गोचराष्टक वर्ग में 4 या अधिक रेखाओं वाली राशि पर गोचर कर रहा है, तो जिन-जिन कक्षाओं में उस राशि को शुभ रेखाएँ प्राप्त हुई हैं, उन कक्षाओं के स्वामी ग्रह के जन्मपत्रिका में भावों और नैसर्गिक कारकत्वों से सम्बन्धित शुभफलों की प्राप्ति होती है।
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सप्तर्षि और सप्तर्षि मण्डल
प्रत्येक मनु के काल को मन्वन्तर कहा जाता है। प्रत्येक मन्वन्तर में देवता, इन्द्र, सप्तर्षि और मनु पुत्र भिन्न-भिन्न होते हैं। जैसे ही मन्वन्तर बदलता है, तो मनु भी बदल जाते हैं और उनके साथ ही सप्तर्षि, देवता, इन्द्र आदि भी बदल जाते हैं।
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अजमेर की भगवान् नृसिंह प्रतिमाएँ
विधानानुसार नृसिंहावतार मानव एवं पशु रूप धारण किए, शीश पर मुकुट, बड़े नाखून, अपनी जानू पर स्नेह के साथ प्रह्लाद को बिठाए हुए है। बालक प्रह्लाद आँखें मूँदे, करबद्ध विनम्र भाव से स्तुति करते प्रतीत हो रहे हैं।
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सूर्य नमस्कार से आरोग्य लाभ
सूर्य नमस्कार की विशेष बात यह है कि इसका प्रत्येक अगले आसन के लिए प्रेरित करता है। इस क्रम में लगातार 12 आसन होते हैं। इन आसनों में श्वास को पूरी तरह भीतर लेने और बाहर निकालने पर बल दिया जाता है।