शक्ति का प्रतीक 'देवी दुर्गा'
Jyotish Sagar|June 2023
यह उत्सव राजा कंसनारायण ने अपने क्षेत्र राजाशाही (बंगाल) प्रान्त के ताहिरपुर में आयोजित किया था। कहा जाता है कि तभी से दुर्गा पूजा को विशेष लोकप्रियता मिली। इनकी पूजा पद्धति को 'कंसनारायण पद्धति' कहा जाता है।
डॉ. हनुमान प्रसाद उत्तम
शक्ति का प्रतीक 'देवी दुर्गा'

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

यह समस्त संसार शक्तिमय है। नास्तिक से नास्तिक व्यक्ति को भी अन्ततोगत्वा यह स्वीकार करना पड़ता है कि इस संसार में ऐसी कोई अदृश्य शक्ति अवश्य है, जिसके कारण यह ब्रह्माण्ड निश्चित नियमों से बँधकर अपने यात्राक्रम को आगे बढ़ा रहा है। भले ही वह नास्तिक व्यक्ति उस अदृश्य शक्ति को ईश्वर नहीं मानकर प्रकृति का नाम दे। वह शक्ति ही इस संसार को जन्म देती है एवं उसका पालन करती है। इस कार्य संचालन के लिए हमारे यहाँ तीन देवताओं की कल्पना की गई है, जिनमें प्रथम, ब्रह्मा हैं, जो सृष्टि को जन्म देते हैं, द्वितीय विष्णु जो कि सृष्टि का पालन करते हैं और तृतीय रुद्र अर्थात् शिव जो कि सृष्टि का संहार करते हैं।

तीनों ही देवताओं के साथ अपनी-अपनी शक्ति जुड़ी हुई है। उनके नाम अलग-अलग हैं। ब्रह्मा के साथ महासरस्वती, विष्णु के साथ महालक्ष्मी और रुद्र के साथ महाकाली। मूल रूप से इन तीनों शक्तियों का रूप एक ही है। वह है, शक्ति की प्रतीक देवी 'दुर्गा'। वैदिक साहित्य में 'शक्ति सृजति ब्रह्माण्डम्' कहकर जिसकी ओर इंगित किया गया है वह ‘देवी दुर्गा' ही हैं। ऋग्वेद में देवी अपना परिचय इन शब्दों में देती हैं, 'मैं स्वयं समग्र जगत् की ईश्वरी हूँ। उपास्य तत्त्वों में, 'मैं ही श्रेष्ठ हूँ। मैं ही एकमात्र उपास्य हूँ। मैं ही सम्पूर्ण जगत् में हूँ। मुझे तुम सर्वरूप में देख रहे हो, परन्तु पहचान नहीं पा रहे हो।'

‘देवीभागवत्’ (7/7) पुराण में उनके विराट् स्वरूप का वर्णन इन शब्दों में किया गया है उनके विराट् स्वरूप के प्रदर्शन के समय आकाश उनका मस्तक, विश्व उनका हृदय, पृथ्वी जंघा, वेद वाणी और वायु प्राण थे। चन्द्रमा और सूर्य उनके नेत्र थे, दिशाएँ कान थीं, पाताल नाभि, ज्योतिष चक्र वक्षस्थल, जनलोक मुख तथा पलकें दिन-रात थीं। यह स्वरूप उस शक्ति के अतिरिक्त और किसी का नहीं हो सकता, जो अदृश्य रूप में इस विश्व के कण-कण में व्याप्त है।

Diese Geschichte stammt aus der June 2023-Ausgabe von Jyotish Sagar.

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