एक दिन वह काशी के पंचगंगा घाट पर शिक्षागुरु माधवानंदजी की सेवा के लिए फूल चुन रहा था। आत्मज्ञानी महापुरुष संत राघवानंदजी ने उसे देख लिया और बोले : "ऐ छोरा ! क्या करता है? फूल चुरा रहा है क्या?"
लड़का "नहीं महाराजजी ! चुरा नहीं रहा हूँ, गुरुजी के लिए चुन रहा हूँ।"
‘‘इधर आओ ! कहाँ रहते हो, कहाँ से आये हो?"
लड़के ने परिचय दिया। संत ने फिर पूछा : "क्या पढ़ते हो ?" लड़के ने स्तोत्र-पाठ सुना दिया। उन महापुरुष ने कहा : ‘‘ऐ मूर्ख ! इस पाठ और रटारटी से क्या हो जायेगा ! दीये में तेल थोड़ा है, बाती बुझ जायेगी। यह पाठ तेरी क्या रक्षा करेगा ! भगवान का नाम ले, भगवान का ज्ञान पा।"
"अभी तो गुरुजी ने यह पाठ पढ़ाया है। सम्भवतः इसके बाद भगवद्भक्ति की शिक्षा, मंत्रदीक्षा आदि देंगे।"
Diese Geschichte stammt aus der June 2023-Ausgabe von Rishi Prasad Hindi.
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साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज के महानिर्वाण दिवस पर विशेष
धर्मांतरणग्रस्त क्षेत्रों में की गयी स्वधर्म के प्रति जागृति
ऋषि प्रसाद प्रतिनिधि।