प्रस्तावना : तेजी से बढ़ती आबादी और खाद्य तेलों की बढ़ती मांग के साथ भारत विश्व में वनस्पति तेलों के सबसे बड़े उपभोक्ताओं में से एक के रूप में उभरा है। लेकिन देश के घरेलू तिलहन उत्पादन का इस बढ़ती मांग के साथ तालमेल नहीं बन सका है, जिससे भारी आयात निर्भरता की स्थिति बनी है। वर्तमान में भारत गंभीर घरेलू कमी को पूरा करने के लिये 14 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक मूल्य के वनस्पति तेल का आयात करता है, लेकिन यह घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने और घरेलू उत्पादन को बढ़ाकर आयात पर निर्भरता कम करने का इरादा भी रखता है। निकट भविष्य में तिलहन के मामले में देश को आत्मनिर्भरता प्राप्त करना होगा है लेकिन अभी आयात अपरिहार्य है। वर्तमान आयात रणनीति उपभोक्ताओं के लाभ को प्राथमिकता देती है और स्थानीय तिलहन किसानों के कल्याण की अवहेलना करती है। तिलहन पर एक समग्र नीति को उपभोक्ताओं और उत्पादकों के हितों को विवेकपूर्ण ढंग से संतुलित करना होगा, तभी यह प्रभावी हो सकेगा। भूमि संबंधी बाधा, जल की कमी और जलवायु परिवर्तन जैसे उभरते जोखिमों के कारण इस दिशा में व्यापक नीतिगत कार्रवाई की आवश्यकता है।
तिलहन उत्पादन में चुनौतियां :
*भूमि विखंडन : भारत में तिलहन उत्पादन की प्रमुख चुनौतियों में से एक है भूमि विखंडन या जोत का छोटा आकार। भारतीय किसान छोटी जोत रखते हैं, जिससे उनके लिये आधुनिक कृषि तकनीकों, मशीनरी और प्रौद्योगिकी को अपनाना कठिन हो जाता है।
*निम्न उत्पादकता : भारत में तिलहन की पैदावार अन्य देशों की तुलना में अपेक्षाकृत कम है। तिलहन की उत्पादकता गुणवत्ताहीन बीज, सिंचाई सुविधाओं की कमी, उर्वरकों के अपर्याप्त उपयोग और अपर्याप्त अनुसंधान एवं विकास प्रयासों से बाधित होती है।
*जलवायु विविधता : भारत में विविध जलवायु दशा पाई जाती है और फसल उत्पादकता जल, तापमान तथा अन्य पर्यावरणीय कारकों की उपलब्धता पर अत्याधिक निर्भर है। भारत में वर्षा के पैटर्न में उल्लेखनीय परिवर्तन आया है, जिसने तिलहन उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।
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मृदा में नमी की जांच और फायदे
नरेंद्र कुमार, संदीप कुमार आंतिल2, सुनील कुमार। और हरदीप कलकल 1 1 कृषि विज्ञान केंद्र सिरसा, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय 2 कृषि विज्ञान केंद्र, सोनीपत, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय
निस्तारण की व्यावहारिक योजना पर हो अमल
पराली जलाने से हुए प्रदूषण से निपटने के दावे हर साल किए जाते हैं, लेकिन आज तक इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकल सका है। यह समस्या हर साल और विकराल होती चली जा रही है।
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जैसे-जैसे विश्व की आबादी बढ़ती जा रही है, लोगों की खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने की चुनौती भी बढ़ रही है।
बढ़ा बजट उबारेगा कृषि को संकट से
साल था 1996 चुनाव परिणाम घोषित हो चुके थे और अटल बिहारी वाजपेयी को निर्वाचित प्रधानमंत्री के रुप में घोषित किया जा चुका था।
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भारतीय अर्थव्यवस्था में एक विरोधाभास पैदा हो गया है। तेज आर्थिक विकास दर के फायदे कुछ लोगों तक सीमित हो गए हैं जबकि देश की आबादी का बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है।
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मधुमक्खियां भी हो रही हैं प्रभावित हवा प्रदूषण से
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ज्वार की रोग एवं कीट प्रतिरोधी नई किस्म विकसित
भारत श्री अन्न या मोटे अनाज का प्रमुख उत्पादक है और निर्यात के मामले में भी हमारा देश दूसरे पायदान पर है।
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खरपतवार प्रबंधन पर एक संयुक्त अध्ययन में खुलासा हुआ है कि हर साल भारत में फसल उत्पादन में करीब 192,202 करोड़ रुपये का नुकसान खरपतवारों के कारण होता है।
जलवायु परिवर्तन बनाम कृषि विकास...
कृषि और प्राकृतिक स्रोतों पर आधारित उद्यम न केवल भारत बल्कि ज्यादातर विकासशील देशों की आर्थिक उन्नति का आधार हैं। कृषि क्षेत्र और इसमें शामिल खेत फसल, बागवानी, पशुपालन, मत्स्य पालन, पॉल्ट्री संयुक्त राष्ट्र के दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों खासकर शून्य भूखमरी, पोषण और जलवायु कार्रवाई तथा अन्य से जुड़े हुए हैं।