टमाटर कम समय में अधिक उत्पादन देने के साथ-साथ किसानों के आर्थिक उन्नयन में महत्वपूर्ण योगदान देता है। इसके फलों को ताजी अवस्था में सलाद के रूप में और पकाकर सब्जी में परिरक्षित करके चटनी, स्कैवश, आचार, सॉस, केचप, प्यूरी इत्यादि रूप में प्रयोग में लाया जाता है। टमाटर में प्रोटीन तथा प्रचुर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, कैल्शियम, लोहा तथा अन्य खनिज पदार्थ पाये जाते हैं।
जलवायु : टमाटर की फसल के लिए 18 से 27 डिग्री सेल्सियस सबसे उपयुक्त होता है। 21 से 24 डिग्री सेल्सियस पर टमाटर में लाल रंग सबसे अच्छा विकसित होता है। इन्हीं सब कारणों से सर्दियों में फल मीठे और गहरे लाल रंग के होते हैं।
भूमि तथा उसकी तैयारी: टमाटर की खेती लगभग सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है। परन्तु उचित जल निकास वाली दोमट व बलुई दोमट भूमि सबसे अच्छी है। साधारणतया इसकी खेती 6.5 से 7.5 पीएच वाली मृदा में अच्छी होती है। रोपाई से पहले भूमि की जुताई कर पाटा लगाकर खेत को समतल और भुरभुरी बना लेना चाहिए।
प्रमुख किस्में : टमाटर की किस्मों को मुख्य रूप से सीमित और असीमित दो वर्षों में वर्गीकृत किया जाता है।
(अ) सीमित बढ़वार वाली किस्में :
1. पूसा अर्ली डुवार्फ : इसके पौधे छोटे तथा फल मध्यम आकार के सर्वत्र समान लाल रंग होते हैं। इस किस्म के फल रोपण से 50-60 दिन बाद प्राप्त होने लगते हैं।
अन्य किस्म : पंजाब छुहरा, डीवीआरटी- 1, 2 पूसा गौरव, नरेन्द्र टमाटर-2 (NDT-120) काशी विशेष, काशी अमृत, अर्का आशीष, अर्का आलोक, पूसा संकट 1,2,4,3 पूसा गौरव, पूसा सदाबहार, रोमा, उत्सव, अंकुश, उत्तम।
(ब) असीमित बढ़वार वाली किस्में :
1. पूसा रूबी: इस किस्म से प्रति पौधे से 25-30 फल प्राप्त होते हैं तथा रोपण के 5060 दिन बाद तैयार हो जाती है। यह किस्म टमाटर का जूस बनाने के लिए अत्यंत उपयुक्त है।
2. अर्का विकास : इस किस्म से औसत उपज 303 क्विंटल प्रति हैक्टेयर प्राप्त होती है।
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