![कृषि से जुड़ी आबादी को मिले विकास का फायदा](https://cdn.magzter.com/1344336963/1697257474/articles/el6V9z23w1697543388028/1697543569439.jpg)
बीते दिनों एक राष्ट्रीय दैनिक में प्रकाशित पहले पन्ने की रिपोर्ट ने मेरी बात की ही पुष्टि की गई कि 'कृषि को इतने वर्षों में जान-बूझकर गरीब रखा गया है।' जब तक अर्थशास्त्रियों और नीति निर्माताओं के हाथों में कृषि महज महंगाई नियंत्रण के एक औजार के रूप में रहेगा तब तक किसानों को मुश्किलों की उस गहरी दलदल से केवल कोई चमत्कार ही बाहर निकाल सकता है। अपनी इस मौजूदा स्थिति के लिए किस्मत को ही दोष देने वाले किसान शायद ही कभी समझ सकें कि कैसे हकीकत में वे उस दोषपूर्ण आर्थिक प्रारूप के शिकार हैं जो उनके समाज में निचले पायदान पर जैसे-तैसे गुजर-बसर को यकीनी बनाता है।
खरीफ सीजन की फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में बढ़ोतरी के प्रस्ताव पर नीति आयोग, वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग और वाणिज्य मंत्रालय ने अन्य मुद्दों के साथ ही बढ़ती मुद्रास्फीति को चिंता का विषय बताते हुए शंकाएं जताई थीं। बीती 29 अगस्त को राष्ट्रीय अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्र में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, जहां वाणिज्य मंत्रालय ने सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग के लिए विश्व व्यापार संगठन के मानदंडों के तहत दायित्वों की बात कहकर आपत्ति जताई, वहीं खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्रालय ने मूल्य वृद्धि के परिणामस्वरूप अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ने की बात सामने रखी। संक्षेप में, ऐसा लगता है कि प्रत्येक संबंधित मंत्रालय को किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में अनुमानित बढ़ोतरी से समस्या थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल ने आखिरकार खरीफ सीजन के एमएसपी को 6 से 10 प्रतिशत के बीच कीमतों में वृद्धि को मंजूरी दे दी। यह देखते हुए कि कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) द्वारा गणना की गई उत्पादन लागत में भी उसी अनुपात में वृद्धि हुई है, एमएसपी की घोषणा मुश्किल से उस बढ़ी हुई लागत को पूरा करती है जो किसानों ने फसल उगाने में लगाई।
Esta historia es de la edición October 15, 2023 de Modern Kheti - Hindi.
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![बदलते परिवेश में लाभदायक धान की सीधी बिजाई](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/1183/1736102/YmRpwzSIb1718693879094/1718694013020.jpg)
बदलते परिवेश में लाभदायक धान की सीधी बिजाई
धान भारत की एक प्रमुख फसल है। हमारे देश में लगभग 360 लाख हैक्टेयेर क्षेत्र में धान की खेती की जाती है जिसमें से लगभग 20 लाख हैक्टेयर क्षेत्र वर्षा आधारित है। असिंचित क्षेत्रों में समय पर वर्षा का पानी न मिलने से किसान लोग समय से कद्दू नहीं कर पाते हैं जिससे धान की रोपाई में विलम्ब हो जाती है।
![वर्ल्ड फूड प्राईज प्राप्त करने वाले संजय राजाराम](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/1183/1736102/zP7nSR0Lm1718693735818/1718693855111.jpg)
वर्ल्ड फूड प्राईज प्राप्त करने वाले संजय राजाराम
संजय राजाराम एक भारतीय कृषि विज्ञानी हैं जिन्होंने गेहूं की अधिक उत्पादन देने वाली किस्में विकसित की हैं। गेहूं की इन किस्मों से 'कौज' एवं 'अटीला' प्रमुख हैं।
![अजोला से अच्छी आमदनी प्राप्त करने वाले प्रगतिशील किसान गजानंद अग्रवाल](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/1183/1736102/RO0J4l4P01718693619101/1718693733923.jpg)
अजोला से अच्छी आमदनी प्राप्त करने वाले प्रगतिशील किसान गजानंद अग्रवाल
देश में बहुत से किसान अपने ज्ञान और अनुभव के सहारे सूखी धरती पर तरक्की की फसल उगा रहे हैं। ऐसे किसान न केवल खुद खेती से कमाई कर रहे हैं, बल्कि अपनी मेहनत और नई तकनीकों का उपयोग करके दूसरे किसानों के लिए भी प्रेरणा स्रोत बन रहे हैं।
![ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को कम करना आवश्यक](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/1183/1736102/LyGmXK_-k1718691968793/1718692059199.jpg)
ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को कम करना आवश्यक
ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को सीमित करने में अभी तक कृषि खाद्य प्रणाली को लक्ष्य नहीं बनाया गया है, जबकि नेट जीरो उत्सर्जन हासिल करने और ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के लिए ऐसा करना जरूरी है। वैश्विक स्तर पर कृषि खाद्य प्रणाली 31 प्रतिशत उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है। भारत के कुल उत्सर्जन में कृषि खाद्य प्रणाली का योगदान 34.1 प्रतिशत, ब्राजील में 84.9 प्रतिशत, चीन में 17 प्रतिशत, बांग्लादेश में 55.1 प्रतिशत और रूस में 21.4 प्रतिशत है।
![ग्लोबल डेयरी. मार्केट की मांग पूरी कर सकता है भारत](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/1183/1736102/zxJWCbEhi1718691892034/1718691969668.jpg)
ग्लोबल डेयरी. मार्केट की मांग पूरी कर सकता है भारत
विश्व के डेयरी मार्केट में बेहतर ग्रोथ की संभावनाएं हैं क्योंकि आने वाले समय में पशु प्रोटीन के साथ दूध की मांग दुनिया भर में तेजी से बढ़ने का अनुमान है। इसकी वजह यूरोपियन यूनियन द्वारा लागू की जा रही ग्रीन डील है।
![कृषि-खाद्य प्रणाली में बदलाव के लिए इनोवेशन की जरुरत](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/1183/1736102/D6dJjWV371718691779285/1718691889986.jpg)
कृषि-खाद्य प्रणाली में बदलाव के लिए इनोवेशन की जरुरत
वैश्विक कृषि-खाद्य प्रणाली इस समय कई चुनौतियों का सामना कर रही है। दुनिया की आबादी वर्ष 2050 तक 980 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। इसे खिलाने के लिए खाद्य उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि की आवश्यकता है।
![कृषि में जलवायु परिवर्तन चुनौती से निपटने की जरूरत](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/1183/1736102/jUMjNcdgD1718691688175/1718691777697.jpg)
कृषि में जलवायु परिवर्तन चुनौती से निपटने की जरूरत
भारतीय कृषि को किसानों के लिए फायदे का सौदा बनाने और जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने के लिए पुराने तौर-तरीकों से अलग हटकर सोचने की जरूरत है। अभी तक की नीतियों और योजनाओं से मिश्रित सफलता मिली है, जिनमें सुधार की आवश्यकता है। साथ ही जलवायु परिवर्तन, घटते भूजल स्तर और एग्रीकल्चर रिसर्च के लिए फंडिंग की कमी जैसी चुनौतियों से निपटने की आवशयकता है।
![कृषि अनुसंधान में निवेश बढ़ाने की आवश्यकता](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/1183/1736102/SfflGP4bJ1718691596945/1718691685799.jpg)
कृषि अनुसंधान में निवेश बढ़ाने की आवश्यकता
कृषि अनुसंधान में निवेश किए गए प्रत्येक रुपये पर लगभग 13.85 का रिटर्न मिलता है, जो खेती से जुड़ी अन्य सभी गतिविधियों से मिलने वाले रिटर्न से कहीं अधिक है।
![बढ़ रहे ग्लोबल वार्मिंग के कारण खाद्य उत्पादन संकट में](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/1183/1736102/ZBg2q8gDO1718691524635/1718691593996.jpg)
बढ़ रहे ग्लोबल वार्मिंग के कारण खाद्य उत्पादन संकट में
अमेरिका की जलवायु विज्ञान का विश्लेषण और सम्बन्धित समाचारों की रिपोर्टिंग करने वाली संस्था क्लाइमेट सेंट्रल द्वारा हाल ही में किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि नवंबर 2022 से अक्टूबर 2023 तक वैश्विक तापमान अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच गया।
![गिर रहा पानी का स्तर चिंता का विषय...](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/1183/1736102/oFpksfa6a1718691455813/1718691523130.jpg)
गिर रहा पानी का स्तर चिंता का विषय...
दुनिया भर में बढ़ता तापमान अपने साथ अनगिनत समस्याएं भी साथ ला रहा है, जिनकी जद से भारत भी बाहर नहीं है। ऐसी ही एक समस्या देश में गहराता जल संकट है जो जलवायु में आते बदलावों के साथ और गंभीर रूप ले रहा है।