भारत में कृषि विकास की वर्तमान गति को आगे बढ़ने में विभिन्न कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। खेती के संबंध में दो उल्लेखनीय मुद्दे जिन्हें समझा जाना चाहिए वे हैं जल-जमाव और मिट्टी की लवणता। जलजमाव और मिट्टी की लवणता की दोहरी समस्याएं बड़े पैमाने पर कृषि उत्पादन की स्थिरता को खतरे में डाल रही हैं। मिट्टी की लवणता की समस्या शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में सबसे अधिक व्यापक है। मिट्टी की लवणता भी गंभीर है यह समस्या उन क्षेत्रों में है जहां सिंचाई के लिए उच्च नमक सामग्री वाले भूजल का उपयोग किया जाता है। पानी की निम्न गुणवत्ता, मिट्टी की निम्न गुणवत्ता और जल प्रणाली के गलत विनियोजन के कारण किसानों की आय में कमी आई है। पारिस्थितिक क्षरण के कारण हरियाणा राज्य में जल जमाव और मिट्टी की खराबी के मुद्दे खेत की समर्थन क्षमता के लिए काफी खतरे हैं। स्थिरता प्राप्त करने के लिए हमें कृषि मिट्टी की गिरती गुणवत्ता का प्रबंधन करने की आवश्यकता है।
भूमि सुधार की दृष्टि से हरियाणा की भूमि को मोटे तौर पर दो भागों में बांटा जा सकता है - लवणीय व क्षारीय भूमि। लवणीय भूमि में मुख्यतः कैल्शियम, मैगनीशियम, सोडियम के क्लोराइड व सल्फेट से बने नमक की मात्रा अधिक होती है (0.1% (ई.सी. ई. 4 डैसीसीमन या मीटर)। ऐसी भूमि को उपयुक्त फसल चक्रों व प्रबन्ध क्रियाओं को अपनाकर सुधारा जा सकता है। क्षारीय भूमि में सोडियम कार्बोनेट एक मुख्य घुलनशील तत्व होता है ऐसी भूमि का खारा अंग (पी. एच.) अधिक (8-5) होता है। इन्हें भी उचित फसल चक्रों, प्रबन्ध क्रियाओं और जिप्सम आदि के प्रयोग से सुधारा जा सकता है।
लवणीय भूमि के सुधार के तरीके
• एक एकड़ के खेत को 8 बराबर हिस्सों (प्लाट) में बांट लें।
• प्रत्येक प्लाट के चारों ओर 30 सें. मी. ऊंची मजबूत मेढ़ बनायें।
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मृदा में नमी की जांच और फायदे
नरेंद्र कुमार, संदीप कुमार आंतिल2, सुनील कुमार। और हरदीप कलकल 1 1 कृषि विज्ञान केंद्र सिरसा, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय 2 कृषि विज्ञान केंद्र, सोनीपत, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय
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