फल द्वारा आंवला केश तेल व शैम्पू भी तैयार किया जाता है। ताजे फलों से चटनी, अचार, मुरब्बा, शर्बत, जैम, कैण्डी इत्यादि खाद्य पदार्थ निर्मित किये जाते हैं। फल की उपयोगिता औषधीय गुण के कारण काफी अधिक है। आंवला का फल चर्म रोग खुजली, सिर दर्द, हैजा, कब्जियत, मधुमेह, दिल की अत्यधिक धड़कन, पेशाब में जलन, पेचिश, अतिसार, गर्मी, पित्त, सर्दी-जुकाम, मसूड़ों का दर्द व खून का बहना इत्यादि रोगों में काफी लाभकारी पाया जाता है। आंवला के बीज का प्रयोग मधुमेह व चर्म रोगों में अत्यन्त गुणकारी होता है।
फलों की उपयोगिता के कारण आंवला की खेती का व्यावसायिक महत्व काफी अधिक हो गया है। इसके अलावा आंवला की काश्त करने में कम लागत आती है और फलत की समस्याओं से कम प्रभावित होती है। इसलिए इसका क्षेत्रफल उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों में काफी अधिक बढ़ता जा रहा है और देशों के अन्य प्रदेशों में भी व्यावसायिक स्तर पर किया जा रहा है।
भूमि एवं जलवायु : आंवला उपोष्ण जलवायु का पौधा है जो बहुत ही हार्डी होता है और हर प्रकार की जलवायु व भूमि को सहन करने की क्षमता रखता है। इस फल को कम उपजाऊ, ऊसरीली एवं बंजर भूमि तथा कम सिंचाई वाले क्षेत्रों में आसानीपूर्वक उगाया जा सकता है। बलुई दोमट मिट्टी से लेकर मटियार दोमट, काली मिट्टी, दोमट व अन्य सभी प्रकार की भूमि में आंवला की काश्त की जा सकती है। इसके अलावा क्षारीय या ऊसरीली भूमि में आंवला की काश्त की जा सकती है। इसके अलावा क्षारीय या ऊसरीली भूमि जिसका पी.एच. मान 7, 50-9.5 तक, विनिमयशील सोडियम 30-35 प्रतिशत तथा विद्युत चालकता 10-12 मिलीम्होज प्रति सैं.मी. तक हो, आंवला की काश्त की जा सकती है। ऐसी भूमि में जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। चूंकि आंवला का पौधा जंगली रूप में देश के अधिकांशत: जंगलों में मिलता है। अत: इसकी खेती समुद्रतल 1800 मी० ऊंचाई वाले स्थानों पर भी उगाये जा सकते हैं।
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सब्जियों की जैविक खेती
सब्जियों की जैविक खेती हमारे देश में हरित क्रांति के अंतर्गत सिंचाई के संसाधनों के विकास, उन्नतशील किस्मों और रासायनिक उर्वरकों एवं कृषि रक्षा रसायनों के उपयोग से फसलों के उत्पादन में काफी बढ़ोतरी हुई। लेकिन समय बीतने के साथ फसलों की उत्पादकता में स्थिरता या गिरावट आने लगी है। इसका प्रमुख कारण भूमि की उर्वराशक्ति में ह्रास होना है।
किसानों के लिए पैसे बचाने का महत्व एवं बचत के आसान सुझाव
किसानों के लिए बचत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उन्हें आर्थिक सुरक्षा और स्थिरता प्रदान करती है। खेती एक जोखिम पूर्ण व्यवसाय है जिसमें मौसम, फसल की बीमारी और बाजार के उतार-चढ़ाव जैसी कई अनिश्चितताएं शामिल होती हैं।
उर्द व मूंग में एकीकृत रोग प्रबंधन
दलहनी फसलों में उर्द व मूंग का प्रमुख स्थान है। जायद में समय से बुवाई व सघन पद्धतियों को अपनाकर खेती करने से इन फसलों की अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है। जायद में पीला मौजेक रोग का प्रकोप भी कम होता है।
ढींगरी खुम्ब उत्पादन : एक लाभकारी व्यवसाय
खुम्बी एक पौष्टिक आहार है जिसमें प्रोटीन, खनिज लवण तथा विटामिन जैसे पोषक पदार्थ पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। खुम्बी में वसा की मात्रा कम होने के कारण यह हृदय रोगियों तथा कार्बोहाईड्रेट की कम मात्रा होने के कारण मधुमेह के रोगियों के लिए अच्छा आहार है। खुम्बी एक प्रकार की फफूंद होती है। इसमें क्लोरोफिल नहीं होता और इसको सीधी धूप की भी जरूरत नहीं होती बल्कि इसे बारिश और धूप से बचाकर किसी मकान या झोंपड़ी की छत के नीचे उगाया जाता है जिसमें हवा का उचित आगमन हो।
वित्तीय साक्षरता को उत्साहित करने में सोशल मीडिया की भूमिका
आधुनिक डिजिटल प्रौद्योगिकी का पूरी तरह से प्रयोग करना एवं भविष्य में वित्तीय सुरक्षा को यकीनन बनाने के लिए, प्रत्येक के लिए वित्तीय साक्षरता आवश्यक है। यह यकीनन बनाने के लिए कि आपका वित्त आपके विरुद्ध काम करने की बजाये आपके लिए काम करती है, ज्ञान एवं कुशलता की एक टूलकिट्ट की जरूरत होती है।
मेथी की उन्नत खेती एवं उत्पादन तकनीक
मेथी (Fenugreek) की खेती पूरे भारत में की जाती है। इसका सब्जी में केवल पत्तियों का प्रयोग किया जा सकता है। इसके साथ ही बीजों का प्रयोग मसाले के रूप में किया जाता है।
जैविक खादों का प्रयोग बढ़ायें
भूमि से अधिक पैदावार लेने के लिए उपजाऊ शक्ति को बनाये रखना बहुत जरूरी है। वर्ष 2025 में 30 करोड़ टन खाद्यान्न उत्पादन के लिए लगभग 45 मिलियन टन उर्वरकों की जरूरत होगी, लेकिन एक अन्दाज के अनुसार वर्ष 2025 में 35 मिलियन टन उर्वरकों का प्रयोग किया जायेगा।
गेंदे की वैज्ञानिक खेती से लाभ
गेंदा बहुत ही उपयोगी एवं आसानी से उगाया जाने वाला फूलों का पौधा है। यह मुख्य रूप से सजावटी फसल है। यह खुले फूल, माला एवं भू-दृश्य के लिए उगाया जाता है।
विनाशकारी खरपतवार गाजरघास की रोकथाम
अवांछित पौधे जो बिना बोये ही उग जाते हैं और लाभ की तुलना में ज्यादा हानिकारक होते हैं वो खरपतवार होते हैं। खरपतवार प्राचीन काल से ही मनुष्य के लिये समस्या बने हुये हैं, खेतों में उगने पर यह फसल की पैदावार व गुणवत्ता पर विपरीत असर डालते हैं।
खेती में बुलंदियों की ओर बढ़ने वाला युवक किसान - नितिन सिंह
उत्तर प्रदेश का एग्रीकल्चर सैक्टर काफी तेजी से ग्रो कर रहा है। इस सैक्टर को लेकर सबसे खास बात यह है कि देश के युवा भी इसमें दिलचस्पी ले रहे हैं। इसी क्रम में हम आपको यूपी के सीतापुर के रहने वाले एक ऐसे युवक की कहानी बताने जा रहे हैं, जो लाखों युवा किसानों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गए हैं।