जिफ्फी जिराफ बोला, "नंदनवन के राजा दीवाली पर बच्चों के लिए एक खेल प्रतियोगिता भी आयोजित कर रहे हैं और चंदनवन के राजा बच्चों के लिए उपहार पैकिंग प्रतियोगिता की योजना बना रहे हैं.”
सैली गिलहरी बोली, “लगता है, हर जंगल का राजा दीवाली पर बच्चों के लिए कुछ न कुछ करवा रहा है, लेकिन हमारा राजा शेरसिंह इतना कंजूस है कि हमारे लिए कुछ नहीं करवा रहा है."
“अरे, वह कुछ आयोजन कर तो रहा है, देखो, वह दीवाली पर अपने महल को कितना सजा रहा है. यह तो चमक रहा है,” ब्लैकी भालू ने व्यंग्यात्मक में कहा.
चंपकवन के सारे बच्चे इस बात से परेशान थे कि उन के राजा ने उन के लिए दीवाली का कोई आयोजन नहीं किया था. इसलिए उन्होंने शेरसिंह के खिलाफ विरोध करने के लिए एक अनोखी योजना बनाई.
लेकिन राजा को जल्द ही उन के गुस्से का पता चल गया. इस स्थिति को सुलझाने के लिए शेरसिंह ने एक योजना बनाई. उस ने अपने शाही परिधान उतार कर एक साधारण लाल कुरता और सफेद पायजामा पहन लिया तथा खुद को एक आम वनवासी की तरह पेश किया.
शेरसिंह बिना किसी को बताए अपने राजमहल की एक गुप्त सुरंग से बाहर निकल गया. वह सीधे खेल के मैदान में पहुंच गया, जहां बच्चे अपना विरोध प्रदर्शन करने की योजना बना रहे थे. झाड़ियों के पीछे छिप कर वह उन की बातचीत सुनता रहा और उनकी हरकतों पर नजर रखता रहा.
जंबो ने कहा, "मित्रो, शेरसिंह का पुतला बन कर तैयार है."
"जंबो, शेरसिंह के पुतले की पूंछ और लंबी कर दो. शेर की दुम और मूंछें उस की शान होती हैं. इन्हें देर तक जलना चाहिए,” चीकू ने हंसते हुए कहा.
चीकू की बात सुन कर सभी बच्चे हंसने लगे.
झाड़ियों के पीछे छिपे शेरसिंह को झटका लगा. घबरा कर उसने मन ही मन सोचा, 'अरे नहीं, ये बच्चे दीवाली पर मेरा पुतला जलाने की योजना बना रहे हैं. ऐसा होने पर जंगल में रहने वाले वनवासी मेरे प्रति सम्मान खो देंगे. मुझे उन्हें रोकना होगा, लेकिन बल से नहीं, बल्कि प्रेम और बुद्धिमत्ता से.'
शेरसिंह चुपचाप झाड़ियों से निकल कर बच्चों के पास आया. बच्चे उसे पहचान ही नहीं पाए. शेरसिंह ने उन का अभिवादन करते हुए कहा, “बच्चो, मैं जयसिंह हूं, चंपकवन का निवासी. तुम लोग यहां क्या कर रहे हो? तुम शेरसिंह का यह पुतला क्यों बना रहे हो?”
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