स ऊदी अरब से कोरबा के पाली गांव की रहने वाली नरगिस के पास एक काल आई, "हैलो...हैलो नरगिस, मैं वसीम बोल रहा हूं. कैसी हो?"
काल का जवाब नरगिस शिकायती लहजे में देते हुए बोली, "मैं कैसी हूं, यह पूछ रहे हो? बस, समझो जिंदा हूं."
"ऐसा क्यों कह रही हो नरगिस?" आश्चर्य से वसीम बोला.
नरगिस कुछ नहीं बोली. वसीम ही दोबारा बोला, "ऐसा मत कहो."
नरगिस का जवाब फिर शिकायत के साथ नाराजगी भरा था, "इतने दिनों बाद तुम्हें मेरी याद आ रही है. मैं तो हमेशा तुम्हें याद करती हूं तुम्हें...नंबर भी दिया था, मगर?" बात पूरी किए बगैर चुप हो गई.
इस पर वसीम ने कहा, "नाराज मत हो नरगिस, जिस दिन से यहां आया हूं, सच कहो तो मैं तुम्हें कभी भूल नहीं पाया. यहां दम्मन, सऊदी अरब में इतना काम है कि मत पूछो...." वसीम मानो हाथ जोड़ कर के मनुहार कर रहा हो.
"अच्छा, वहां काम में ही मन लगा रहता है, यह बात है. सिर्फ काम और पैसा ही तुम कमाते रहो और मैं तुम से बात भी नहीं करूं." इतराती हुए नरगिस बोली.
"अरे, ऐसा नहीं है यार! मैं तो 24 घंटे तुम्हें याद करता रहता हूं. तुम्हारी सूरत मेरी आंखों के सामने घूमती रहती है. मैं संकोच में था कि फोन तुम उठाओगी या नहीं. हमें भूल तो नहीं गई होगी?" वसीम सहजता से बोला.
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