चतुर्थी से लेकर चतुर्दशी तक अपनी उपस्थिति से भक्तों के समस्त विघ्नों को हर लेना विनायक का प्रय कार्य है। इसलिए नगण्य-सी वस्तु से भी प्रसन्न होने वाले उमाशंकर सुत गजानन हर मनुज के लिए सुख कानन का मार्ग खोलने प्रतिवर्ष आते हैं।
प्रसिद्ध पौराणिक कथा है कि शिवापुत्र को स्वयं शिव ने मस्तकविहीन कर गजमुख से सुशोभित किया। इसी से वे गजानन कहाए। देवताओं ने उन्हें गणाध्यक्ष के पद पर अभिषिक्त किया और त्रिदेव ने उन्हें अग्रपूज्य होने का उत्तम वर प्रदान किया। इसी से शिवापुत्र गणेश कहाए। गणेश प्रथम पूज्य हैं, सर्वबलाधीश्वर हैं, विघ्नसागरशोषक हैं। लोक में कोई भी कार्य आरंभ करने को श्रीगणेश करना कहते हैं, क्योंकि विघ्न विनायक के बिना कोई भी कार्य आरंभ नहीं हो सकता। लिहाज़ा, आज बात श्रीगणेश नाम में प्रयुक्त गण और गज शब्दों पर।
गण शब्द के प्रचलित अर्थ हैं समूह, संघ, वर्ग आदि। महादेव के अनुचर भी गण ही कहाते हैं जिससे कैलास को ही गणपर्वत और गणाचल भी कहते हैं। महाभारत में वर्णित अक्षौहिणी सेना के एक विभाग को भी गण ही कहा गया है जिसमें 27 रथ, 27 हाथी, 81 घोड़े और 135 पैदल सैनिक होते थे। सीना यानी वक्ष को गणपीठक कहते हैं। वहीं, ज्योतिषी गणक है तो उसकी भार्या गणकी कहाई।
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कथाएं चार, सबक़ अपार
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साल समाप्त होने को है, किंतु उसकी स्मृतियां संचित हो गई हैं। अवचेतन में ऐसे न जाने कितने वर्ष पड़े हुए हैं। विगत के इस बोझ तले वर्तमान में जीवन रह ही नहीं गया है। वर्ष की विदाई के साथ अब वक़्त उस बोझ को अलविदा कह देने का है।
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