सर्दी में क्यों तपे धरतीं?
Aha Zindagi|December 2024
सर्दियों में हमें गुनगुनी गर्माहट की ज़रूरत तो होती है, परंतु इसके लिए कृत्रिम साधनों के प्रयोग के चलते धरती का ताप भी बढ़ने लगता है। यह अंतत: इंसानों और पेड़-पौधों सहित सभी जीवों के लिए घातक है। अब विकल्प हमें चुनना है: जीवन ज़्यादा ज़रूरी है या फ़ैशन और बटन दबाते ही मिलने वाली सुविधाएं?
चेतन सिंह सोलंकी
सर्दी में क्यों तपे धरतीं?

जैसे-जैसे सर्दी का मौसम आता है, भारत में ऊर्जा खपत के पैटर्न में सहज रूप से बदलाव देखने को मिलता है। सामान्यत: सर्दियों में घरों और व्यवसायों में गर्मियों के मुक़ाबले बिजली का उपयोग कम होता है, क्योंकि एयरकंडीशनर और पंखे-कूलर की आवश्यकता घट जाती है। यह मौसमी कमी हमें बिजली बिल कम करने, पैसे बचाने, कार्बन उत्सर्जन को घटाने और पर्यावरण में सकारात्मक योगदान करने का अवसर देती है। हालांकि जाड़े का मौसम कुछ क्षेत्रों में ऊर्जा की मांग को बढ़ा भी देता है। उदाहरण के लिए, कूलिंग की आवश्यकता घट जाती है, परंतु गर्म पानी से स्नान करने की आवश्यकता बढ़ जाती है। बावजूद इसके कुछ व्यावहारिक बदलावों के साथ, हम घरों में इस मौसम की ऊर्जा बचत संभावनाओं को अधिकतम कर सकते हैं और एक बड़ा सकारात्मक असर डाल सकते हैं।

क्यों ज़रूरी है बचत?

भारत में अभी भी बिजली उत्पादन मुख्य रूप से कोयले पर निर्भर है, देश की 70% से अधिक बिजली कोयला-आधारित संयंत्रों से आती है। हर एक यूनिट बिजली के लिए जो कोयले से बनाई जाती है, लगभग एक किलो कार्बन डाइऑक्साइड गैस वायुमंडल में उत्सर्जित होती है। जब यह कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल में छोड़ी जाती है तो यह औसतन 300 सालों तक वहां रहती है। यह तथ्य ग्लोबल वार्मिंग और ग्रीनहाउस प्रभाव को तीव्र करता है। इसका मतलब है कि जो भी बिजली हम आज उपयोग करते हैं, उसका जलवायु पर प्रभाव सदियों तक रहेगा।

कल्पना कीजिए: एक दिन के लिए फ्रिज का उपयोग करना, एक बार गर्म पानी से स्नान करना या एक घंटे तक एयर कंडीशनर चलाना - ये सभी अस्थायी आराम प्रदान कर सकते हैं, लेकिन ये हमारे बच्चों और पोते-पोतियों को विरासत में जलवायु संकट भी देंगे। आज के साधारण आराम लंबे समय तक पर्यावरण के नुक़सान का कारण बनते हैं। इसके चलते ऊर्जा बचाने के लिए गंभीरता से सोचना और उसके उपायों को तत्काल अमल में लाना हर में व्यक्ति की ज़िम्मेदारी बन जाती है।

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