अभिनय की राह पर नन्हे क़दम
सचिन ने बाल कलाकार के रूप में अपनी पहली ही फिल्म के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त किया। यानी पूत के पांव पालने में ही दिखने लगे थे।
साढे चार साल की उम्र से मनोरंजन जगत में सक्रिय सचिन पिलगांवकर अपनी पहली ही फिल्म 'हा माजा मार्ग एकला' के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के हाथों सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। कॅरियर के 61वें वर्ष में प्रवेश कर चुके सचिन अभिनय, लेखन, निर्देशन, निर्माण, गीत, संगीत, नृत्य आदि विधाओं में अपना हुनर दिखा चुके हैं, अब वे नई विधा रेडियो शो के तहत अनसुनी बातों सहित अपने गायन से श्रोताओं का मनोरंजन करने जा रहे हैं।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी सचिन ने एक लंबे साक्षात्कार में सुनाई अपने लंबे सफ़र की कहानी। प्रस्तुत हैं उसके मुख्य अंश, उन्हीं की ज़बानी।
किरायेदार की मदद से शुरू हुआ कॅरियर
मेरा जन्म 17 अगस्त, 1957 को मुंबई में हुआ। पिताजी साझेदारी में प्रिंटिंग प्रेस चलाते थे। उन्होंने जमापूंजी तो नहीं लगाई थी, पर काम करने के एवज़ में फ़ायदे में हिस्सेदारी लेते ', थे। मेरी मां गृहिणी थीं। उस वक़्त मेरी बहन नहीं हुई थी, घर में मैं इकलौता था। पिताजी का सपना था कि उनका बेटा राजकपूर बने, क्योंकि वे उनके बड़े प्रशंसक थे। राजकपूर बनूं मतलब उनकी तरह अभिनेता, निर्माता और निर्देशक। लेकिन मनोरंजन जगत में हमारी दूर-दूर तक कोई जान-पहचान नहीं थी, सो सपना कैसे पूरा होगा इसका अंदाज़ा नहीं था।
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कथाएं चार, सबक़ अपार
कथाएं केवल मनोरंजन नहीं करतीं, वे ऐसी मूल्यवान सीखें भी देती हैं जो न सिर्फ़ मन, बल्कि पूरा जीवन बदल देने का माद्दा रखती हैं - बशर्ते उन सीखों को आत्मसात किया जाए!
मनोरम तिर्रेमनोरमा
अपने प्राकृतिक स्वरूप, ऋषि-मुनियों के आश्रम, सरोवर और सुप्रसिद्ध मेले को लेकर चर्चित गोंडा ज़िले के तीर्थस्थल तिर्रेमनोरमा की बात ही निराली है।
चाकरी नहीं उत्तम है खेती...
राजेंद्र सिंह के घर पर किसी ने खेती नहीं की। लेकिन रेलवे की नौकरी करते हुए ऐसी धुन लगी कि असरावद बुजुर्ग में हर कोई उन्हें रेलवे वाले वीरजी, जैविक खेती वाले वीरजी, सोलर वाले वीरजी के नाम से जानता है। उनकी कहानी, उन्हीं की जुबानी।
उसी से ग़म उसी से दम
जीवन में हमारे साथ क्या होता है उससे अधिक महत्वपूर्ण है कि हम उस पर कैसी प्रतिक्रिया करते हैं। इसी पर निर्भर करता है कि हमें ग़म मिलेगा या दम। यह बात जीवन की हर छोटी-बड़ी घटना पर लागू होती है।
एक कप ज़िंदगी के नाम
सिडनी का 'द गैप' नामक इलाक़ा सुसाइड पॉइंट के नाम से जाना जाता है। लेकिन इस स्थान से जुड़ी एक कहानी ऐसी है, जिसने कई जिंदगियां बचाईं। यह कहानी उस व्यक्ति की है, जिसने अपनी साधारण-सी एक पहल से अंधेरे में डूबे हुए लोगों को एक नई उम्मीद की किरण से रूबरू कराया।
कौन हो तुम सप्तपर्णी?
प्रकृति की एक अनोखी देन है सप्तपर्णी। इसके सात पर्ण मानो किसी अदृश्य शक्ति के सात स्वरूपों का प्रतीक हैं और एक पुष्प के साथ मिलकर अष्टदल कमल की भांति हो जाते हैं। हर रात खिलने वाले इसके छोटे-छोटे फूल और उनकी सुगंध किसी सुवासित मधुर गीत तरह मन को आनंद विभोर कर देती है। सप्तपर्णी का वृक्ष न केवल प्रकृति के निकट लाता है, बल्कि उसके रहस्यमय सौंदर्य की अनुभूति भी कराता है।
धम्मक-धम्मक आत्ता हाथी...
बाल गीतों में दादा कहकर संबोधित किया जाने वाला हाथी सचमुच इतना शक्तिशाली होता है कि बाघ और बब्बर शेर तक उससे घबराते हैं। बावजूद इसके यह किसी पर भी यूं ही आक्रमण नहीं कर देता, बल्कि अपनी देहभाषा के ज़रिए उसे दूर रहने की चेतावनी देता है। जानिए, संस्कृत में हस्ती कहलाने वाले इस अलबेले पशु की अनूठी हस्ती के बारे में।
यह विदा करने का महीना है...
साल समाप्त होने को है, किंतु उसकी स्मृतियां संचित हो गई हैं। अवचेतन में ऐसे न जाने कितने वर्ष पड़े हुए हैं। विगत के इस बोझ तले वर्तमान में जीवन रह ही नहीं गया है। वर्ष की विदाई के साथ अब वक़्त उस बोझ को अलविदा कह देने का है।
सर्दी में क्यों तपे धरतीं?
सर्दियों में हमें गुनगुनी गर्माहट की ज़रूरत तो होती है, परंतु इसके लिए कृत्रिम साधनों के प्रयोग के चलते धरती का ताप भी बढ़ने लगता है। यह अंतत: इंसानों और पेड़-पौधों सहित सभी जीवों के लिए घातक है। अब विकल्प हमें चुनना है: जीवन ज़्यादा ज़रूरी है या फ़ैशन और बटन दबाते ही मिलने वाली सुविधाएं?
उज्ज्वल निर्मल रतन
रतन टाटा देशवासियों के लिए क्या थे इसकी एक झलक मिली सोशल मीडिया पर, जब अक्टूबर में उनके निधन के बाद हर ख़ास और आम उन्हें बराबर आत्मीयता से याद कर रहा था। रतन किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं और महज़ दो माह पहले ही उनके बारे में काफ़ी कुछ लिखा भी गया। बावजूद इसके बहुत कुछ लिखा जाना रह गया, और जो लिखा गया वह भी बार-बार पढ़ने योग्य है। इसलिए उनके जयंती माह में पढ़िए उनकी ज़िंदगी की प्रेरक किताब। रतन टाटा के समूचे जीवन को चार मूल्यवान शब्दों की कहानी में पिरो सकते हैं: परिवार, पुरुषार्थ, प्यार और प्रेरणा। उन्हें नमन करते हुए, आइए, उनकी बड़ी-सी ज़िंदगी को इस छोटी-सी किताब में गुनते हैं।