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वक्फ बोर्ड के सहारे फलती-फूलती मुस्लिम तुष्टीकरण की सियासत
DASTAKTIMES|January 2024
केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री सेंट्रल वक्फ बोर्ड का पदेन अध्यक्ष होता है। ज्यादातर किसी मुसलमान को ही अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री बनाया जाता है। मोदी सरकार में पहले मुख्तार अब्बास नकवी इस पद पर थे, उनके हटने के बाद से स्मृति ईरानी अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री हैं। वो पारसी अल्पसंख्यक समुदाय से हैं, मगर खास बात यह है कि सेंट्रल वक्फ बोर्ड का अध्यक्ष तो गैर-मुस्लिम हो सकता है, लेकिन सारे सदस्य मुस्लिम ही होते हैं।
- संजय सक्सेना
वक्फ बोर्ड के सहारे फलती-फूलती मुस्लिम तुष्टीकरण की सियासत

श्मीर से धारा 370 हटाने के बाद अब मोदी सरकार की नजर वक्फ बोर्ड पर लगी है। कांग्रेस शासनकाल में मुस्लिम तुष्टीकरण की सियासत के चलते अस्तित्व में आये वक्फ बोर्ड में पुनर्गठन को लेकर मोदी सरकार बड़ा फैसला ले सकती है। इसकी वजह भी है, वजह जानने से पहले वक्फ बोर्ड के बारे में थोड़ा समझ लेना भी जरूरी है कि कब इसकी स्थापना हुई और वक्फ बोर्ड हमेशा विवादों में क्यों रहता है? दरअसल 1947 में अंग्रेजों से आजादी मिलने के साथ भारत के बंटवारे से पाकिस्तान नया देश बना। तब जो मुसलमान भारत से पाकिस्तान चले गए, उनकी जमीनों को वक्फ संपत्ति घोषित कर दी गई। इसके बाद 1950 में हुए नेहरू-लियाकत समझौते में तय हुआ था कि विस्थापित होने वालों का भारत और पाकिस्तान में अपनी-अपनी संपत्तियों पर अधिकार बना रहेगा। वो अपनी संपत्तियां बेच सकेंगे। हालांकि, पाकिस्तान में नेहरू-लियाकत समझौते के अन्य प्रावधानों का जो हश्र हुआ, वही हश्र इसका भी हुआ। पाकिस्तान में हिंदुओं की छोड़ी जमीनें, उनके मकानों व अन्य संपत्तियों पर वहां की सरकार या स्थानीय लोगों का कब्जा हो गया, लेकिन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कहा कि भारत से पाकिस्तान गए मुसलमानों की संपत्तियों को कोई हाथ नहीं लगाएगा। नेहरू द्वारा इन सम्पतियों को वक्फ की सपत्ति घोषित कर दिया गया। तत्पश्चात 1954 में वक्फ बोर्ड का गठन हुआ या यूं कहें कि यहीं से भारत के इस्लामीकरण का एजेंडा शुरू हुआ, क्योंकि दुनिया के किसी इस्लामी देश में वक्फ बोर्ड नाम की कोई संस्था नहीं है, यह सिर्फ भारत में है जो इस्लामी नहीं, धर्मनिरपेक्ष देश है।

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