बिहार के लिए क्यों जरूरी हो गए नीतीश कुमार
DASTAKTIMES|January 2025
बिहार की राजनीति पिछले 25 वर्षों में नीतीश कुमार और लालू यादव एंड संस के इर्द-गिर्द घूम रही है। जंगलराज के दौर के बाद जब नीतीश कुमार सत्ता के केन्द्र बिन्दु बने तो उनकी छवि सुशासन बाबू की बनी और बिहार तरक्की के पैमाने पर देश में तेजी से बढ़ते राज्यों में से एक हो गया। नई सदी में बिहार का सियासी सफरनामा पेश कर रहे हैं पटना के वरिष्ठ पत्रकार दिलीप कुमार।
दिलीप कुमार
बिहार के लिए क्यों जरूरी हो गए नीतीश कुमार

गुजरे दिसंबर के अंतिम सप्ताह में बिहार सरकार का एक विज्ञापन प्रकाशित हुआ 'रोजगार मतलब-नीतीश सरकार'। यह विज्ञापन बताता है बिहार के बदलते दौर की कहानी। जंगलराज के दौर के बाद जब 20 वर्ष पहले नीतीश कुमार राज्य की सत्ता में पहली बार आए तो कुछ वर्षों में उनकी छवि सुशासन बाबू की बनी। इस आधार पर वे लगातार जीतते भी रहे। हाल के वर्षों में बेरोजगारी को लेकर सरकार पर सवाल उठने शुरू हुए तो सरकारी भर्तियों का दौर तेजी से शुरू हुआ। एनडीए छोड़ महागठबंधन में जाने और महागठबंधन छोड़ एनडीए में आने के चलते उन्हें 'पलटूराम' की भी संज्ञा दी गई, लेकिन नीतीश विचलित नहीं हुए। बिहार हमेशा उनके एजेंडे में रहा। जाहिर है बिहार की जनता ने भी उन्हें बीते बीस साल से अपनी गिरफ्त में रखा। इस रहस्य को समझने के लिए आपको बीस साल पीछे जाना होगा। यह बीती सदी के वे अंतिम दशक थे जब बिहार जंगलराज के लिए जाना जाता था। इसने नरसंहार का लंबा दौर देखा, जिसमें एक दर्जन से अधिक घटनाएं हुईं। वह लालू-राबड़ी का शासन था। इसके बाद बदलाव की कहानी शुरू हुई जब वर्ष 2005 में नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने। इसे पूरे देश ने महसूस किया। आज सुशासन के नाम की चर्चा होती है। विकास के पैमाने पर देश तेजी से बढ़ते राज्यों में शामिल हो गया। यह एक दिन में नहीं हुआ। बीते 20 वर्षों में नीतीश कुमार ने जो काम किए हैं, वे यहां की कहानी बताते हैं। केन्द्र की राजनीति में बिहार का बड़ा हस्तक्षेप रहा है। लालू व नीतीश के समर्थन के बिना किसी की सरकार केन्द्र में नहीं बनी। देखा जाए तो राज्य से लेकर केन्द्र तक राजनीति बीते 30 वर्षों में नीतीश और लालू के इर्द-गिर्द घूम रही है। अब तो लालू अपने बेटे तेजस्वी यादव को राजनीति में पूरी तरह से स्थापित कर चुके हैं। जबकि भाजपा पिछले ढाई दशक में राज्य में ऐसा कोई नेता खड़ा नहीं कर सकी, जिसका व्यापक जनाधार हो। यही कारण है कि जदयू को साथ लेना उसकी मजबूरी है।

स्थायी दोस्त न स्थायी दुश्मन

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बिहार के लिए क्यों जरूरी हो गए नीतीश कुमार
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January 2025
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हेमंत ने दिया राजनीति को नया मुहावरा

झारखंड ने राजनीति में स्थापना काल से ही कई सियासी उतार-चढ़ाव देखे हैं। प्रदेश के लोगों ने 24 साल के राजनीतिक कालखंड में कई मुख्यमंत्रियों को देखा है। कई बार तो बॉलीवुड 'थ्रिलर' की तरह सूबे में नेतृत्व परिवर्तन हुए हैं। झारखंड के चौथी बार सीएम बनने वाले हेमंत सोरेन ने स्थायित्व का नया मुहावरा गढ़ के सूबे की राजनीति को एक नई दिशा दी। नई सदी में झारखंड की राजनीति में आए उतार- चढ़ाव का आकलन कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार उदय कुमार चौहान।

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January 2025
सियासत के धूमकेतु बन कर उभरे धामी
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January 2025
फिर जुटा महाकुम्भ
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7वीं सदी के राजा हर्षवर्धन की तर्ज पर छह साल पहले यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मेला प्राधिकरण का गठन कर ऐतिहासिक कुंभ मेले को संस्थागत रूप दिया था। 2019 के कामयाब अर्धकुंभ ने प्रयागराज के आसपास की तमाम लोकसभा सीटें बीजेपी की झोली में डाल दी थीं। और इस कामयाबी का सेहरा योगी के सिर बंधा। तब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संगम के सफाईकर्मियों के पांव पखार कर आशीर्वाद लेकर सबको चौंका दिया था। इस बार महाकुंभ है, करोड़ों श्रद्धालुओं का स्वागत करने के लिए योगी की टीम तैयार है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक महीने पहले ही तैयारियों का जायजा ले चुके हैं। इस बार का मेला कई मायनों में अनूठा होगा। पढ़िए प्रयागराज से जाने-माने पत्रकार देवेन्द्र शुक्ल की यह रिपोर्ट।

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January 2025
खेती किसानी अब महंगा सौदा
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नई सदी में कृषि के क्षेत्र में भारत ने कई झंडे गाड़े। दुनिया में दुग्ध उत्पादन में हम पहले और फलों एवं सब्जियों के उत्पादन में दूसरे स्थान पर आ चुके हैं। साल 1950 में खाद्यान्न पैदावार पांच करोड़ टन थी और आज 50 करोड़ टन है लेकिन विडंबना देखिए, देश की आधी आबादी खेती-किसानी में लगी है, बावजूद इसके कृषि का जीडीपी में योगदान केवल 17 फीसदी है। यानी एक बड़ी आबादी खेती के नाम पर पल रही है। जिसका देश के विकास में कोई सीधा योगदान नहीं है। यह वे लाखों किसान और उनके आश्रित हैं जो खेती छोड़ना चाहते हैं क्योंकि यह एक महंगा सौदा हो चुकी है। भारत में खेती-किसानी के हाल का ब्योरा पेश कर रहे हैं कृषि विशेषज्ञ अखिलेश मिश्र।

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बदल गई दुनिया
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कारोबार को लगे पंख
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