18 वीं लोकसभा के सदस्यों का चुनाव करने के लिए सभी दलों ने पूरे देश में चुनाव का बिगुल फूंक दिया है। पूरे देश में लोकसभा की 543 सीटों पर 7 फेज में चुनाव हो रहे हैं। कहा जाता है कि मजबूत लोकतंत्र के लिए सभी मतदाताओं की वोटिंग में भागीदारी बहुत जरूरी है, क्योंकि मतदान की ताकत हमें हमारे संविधान से मिलती है और यह सभी भारतीय नागरिकों का संवैधानिक अधिकार है लेकिन आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि आज भी देश के कई इलाके ऐसे हैं जहां कभी मतदान ही नहीं हुआ है। हालांकि इसके पीछे कई वजह हो सकती हैं लेकिन अब इन इलाकों में पहली बार मतदान की व्यवस्था की जा रही है। झारखंड के सिंहभूम लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में माओवाद से प्रभावित रहे कई अंदरूनी इलाकों में 13 मई को पहली बार या दशकों बाद मतदान होगा। वोटिंग के लिए मतदान कर्मियों और सामग्री को हेलीकॉप्टर के जरिए इन स्थानों पर उतारा जाएगा ताकि एशिया के सबसे घने 'साल' जंगल सारंडा में रहने वाले लोग अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकें। चुनाव कर्मियों द्वारा दूरदराज इलाकों में 118 बूथ बनाए जाएंगे।
झारखंड में 4 चरणों में होगा मतदान
झारखंड की सभी 14 लोकसभा सीटों के लिए मतदान 4 चरणों 13, 20, 25 मई और 1 जून संपन्न होंगे, जबकि 4 जून को मतगणना होगी। सिंहभूम लोकसभा सीट पर 13 मई 2024 को चौथे चरण में वोट डाले जाएंगे।
उग्रवाद से प्रभावित इलाके
पश्चिमी सिंहभूम के उपायुक्त सह जिला निर्वाचन अधिकारी कुलदीप चौधरी ने कहा कि प्रशासन यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि कोई भी मतदाता छूट न जाए। प्रशासन ने ऐसे कई क्षेत्रों की पहचान की है जहां पहली बार या लगभग दो दशक के बाद मतदान होगा क्योंकि ये स्थान माओवादी उग्रवाद से बुरी तरह प्रभावित थे। डीके मिडिल स्कूल और बोरेरो के मध्य विद्यालय जैसे मतदान केन्द्रों पर पहली बार मतदान होगा।
सिंहभूम सीट पर कितने मतदाता?
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सत्य का ज्ञान ही सब दुःखों से दिला सकता है मुक्ति
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आज का स्त्री विमर्श बंदर के हाथ में उस्तरा
चर्चित स्त्रीवादी लेखिका गीताश्री ने अपने लेख की शुरुआत में आलोचक व लेखक अखिलेश श्रीवास्तव 'चमन' का नाम लिए बगैर उनकी एक टिप्पणी के आधार पर उनके मर्दवादी नज़रिए पर लानत - मलानत भेजी। एक लेखक की टिप्पणी पर एक नामचीन लेखिका इतनी भड़क जाएं कि अपनी बात शुरू करने के लिए उन्हें संदर्भित करना पड़े तो जाहिर है लेखक की टिप्पणी बेमानी नहीं रही होगी । उसने कोई ऐसी रग छुई है जहां किसी कोने में दर्द छुपा है। बीते 20 साल के स्त्री विमर्श लेखन का एक समानांतर पक्ष जानने के लिए 'दस्तक टाइम्स' ने चमनजी से आग्रह किया कि जो 'सदविचार' उन्होंने किसी साहित्यिक जलसे में दिया था, उसे वह हमारे मंच पर विस्तार दें ताकि मौजूदा दौर के स्त्री विमर्श की एक सटीक तस्वीर पाठकों के सामने आए। तो मुलाहिजा फरमाइये मि. चमन का यह आलेख |
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हेमंत ने दिया राजनीति को नया मुहावरा
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फिर जुटा महाकुम्भ
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खेती किसानी अब महंगा सौदा
नई सदी में कृषि के क्षेत्र में भारत ने कई झंडे गाड़े। दुनिया में दुग्ध उत्पादन में हम पहले और फलों एवं सब्जियों के उत्पादन में दूसरे स्थान पर आ चुके हैं। साल 1950 में खाद्यान्न पैदावार पांच करोड़ टन थी और आज 50 करोड़ टन है लेकिन विडंबना देखिए, देश की आधी आबादी खेती-किसानी में लगी है, बावजूद इसके कृषि का जीडीपी में योगदान केवल 17 फीसदी है। यानी एक बड़ी आबादी खेती के नाम पर पल रही है। जिसका देश के विकास में कोई सीधा योगदान नहीं है। यह वे लाखों किसान और उनके आश्रित हैं जो खेती छोड़ना चाहते हैं क्योंकि यह एक महंगा सौदा हो चुकी है। भारत में खेती-किसानी के हाल का ब्योरा पेश कर रहे हैं कृषि विशेषज्ञ अखिलेश मिश्र।
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पिछले बीस साल में दुनिया 360 डिग्री बदल गई। नई अर्थव्यवस्थाएं विकसित हुईं। भूराजनीतिक संघर्ष बढ़े और ग्लोबल पावर डायनेमिक्स में फोकस आतंकवाद से क्लाइमेट एक्शन की ओर शिफ्ट होता दिखा। 21वीं सदी की दुनिया का हाल बता रहे हैं रणनीतिक स्तंभकार और वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक के.एस.तोमर।
कारोबार को लगे पंख
21वीं सदी में भारतीय अर्थव्यवस्था ने जबरदस्त रफ्तार पकड़ी। 2010 में पहली बार भारतीय अर्थव्यवस्था ने 1 ट्रिलियन डॉलर का आंकड़ा हासिल किया। इस मुकाम पर पहुंचने में आज़ाद भारत को 63 साल का सफर तय करना पड़ा, लेकिन ट्रिगर दब चुका था। अगले सात साल यानी 2017 तक यह दो ट्रिलियन डॉलर पर पहुंच गई और फिर तीन साल में यानी 2020 में इसने तीन ट्रिलियन डॉलर का निशान भी पार कर लिया | अर्थव्यवस्था के हैरतअंगेज उतार-चढ़ाव और इस रफ़्तार की दिलचस्प कहानी बता रहे हैं आर्थिक मामलों के जाने-माने विशेषज्ञ आलोक जोशी ।