एक तरह का माहौल बेशक मदद करता है पर छोटे शहरों के उद्यमियों की अपनी खासियतें हैं. आप अजमेर में किशनगढ़ के पाटनी भाइयों को ही लीजिए. संगमरमर की खुदाई में मौका ताड़ने में उन्होंने बिल्कुल देर नहीं की. इसने अनाज के थोक व्यापार के पुश्तैनी धंधे से हटकर एक ऐसी यात्रा शुरू करने के लिए प्रेरित किया जिसने उन्हें दुनिया में संगमरमर का सबसे बड़ा उत्पादक बना दिया. भुवनेश्वर के तारा रंजन पटनायक ने धारा के विपरीत जाकर समुद्री निर्यात में भविष्य खोजा. गुजरात में राजकोट के वीरानी बंधुओं ने ज्यादा तेजी से ग्राहकों तक पहुंचने के लिए बड़े वितरण नेटवर्कों की स्थापना के दम पर कामयाबी हासिल की-उनकी कंपनी बालाजी वेफर्स देश के 40 फीसद हिस्से में फैली है. फिर ऐसे भी लोग हैं जिन्होंने जोखिम भरी छलांग लगाते हुए बैंकों से छोटे क लेकर टेक्नोलॉजी में निवेश किया.
कई लोगों ने अपेक्षाकृत छोटे शहरों से मामूली शुरुआत की और वक्त के साथ ही उनका कारोबार राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंच गया. मिसाल के तौर पर, सिक्योरिटी ऐंड इंटेलिजेंस सर्विसेज (एसआइएस) के प्रमुख रवींद्र किशोर सिन्हा सत्तर के दशक के मध्य में लोकनायक जयप्रकाश नारायण की प्रेरणा से रिटायर जवानों को काम पर रखवाना चाहते थे. आज बिहार में पटना की उनकी कंपनी देश-विदेश में प्रमुख ठिकानों को सुरक्षा मुहैया करा रही है और विभिन्न क्षेत्रों में विस्तार कर रही है.
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अब आई मगरमच्छों की बारी
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नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"