नवंबर की 18 तारीख की बात है. पवन चांदना कंप्यूटर मॉनिटर पर टकटकी लगाए बैठे थे. चेहरे पर तनाव था. वे विक्रम-एस रॉकेट के प्रक्षेपण की उलटी गिनती खत्म होने का इंतजार कर रहे थे. उनकी बगल में शांत और चुप भारत डाका बैठे थे. दोनों ने मिलकर अंतरिक्षयान बनाने के लिए 2018 में स्टार्टअप कंपनी स्काइरूट की स्थापना की थी. उनके पीछे दर्शक दीर्घा में प्रतिष्ठित अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की समूची विशिष्ट मंडली विराजमान थी, जिनमें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष एस. सोमनाथ भी हैं. केंद्रीय राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह भी वहां मौजूद थे, जो 'प्रारंभ' नामक इस मिशन की अहमियत का प्रमाण था. दरअसल, विक्रम-एस अंतरिक्षयान लॉन्च व्हीकल ऐसा पहला प्रक्षेपण वाहन था, जो पूरी तरह एक भारतीय निजी कंपनी ने डिजाइन किया और बनाया था. इसकी कामयाबी का मतलब होता कि अंतरिक्ष के क्षेत्र में देश के निजी क्षेत्र की ऊंची छलांग.
तटीय आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा स्थित इसरो के प्रक्षेपण केंद्र में बाहर सुहाना दिन था. प्रक्षेपण के लिए शहतीरों (गर्डरों) से बंधा छह मीटर ऊंचा नीलेसफेद रंग का विक्रम-एस इसरो के बनाए विशाल प्रक्षेपण वाहनों के मुकाबले छोटा दिखाई देता था. मगर अंतरिक्ष टेक्नोलॉजी की पेचीदगियों को देखते हुए एक स्टार्ट-अप कंपनी के लिए यह भारी चुनौती थी. 30 से कुछ ऊपर की उम्र के दोनों चांदना और डाका इसके लिए तैयार थे. दोनों पूर्व आइआइटियन हैं-चांदना खड़गपुर से और डाका मद्रास से. ग्रेजुएशन के बाद विदेश जाने के बजाए दोनों ने 2012 में इसरो से जुड़ने का विकल्प चुना. छह साल इसरो के रॉकेट विज्ञान और अंतरिक्ष गतिविधियों से जुड़े दूसरे महकमों में काम करने के बाद उन्होंने निजी उद्यम के तौर पर स्काइरूट बनाने का फैसला किया.
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