साल 2023 का एक अहम सवाल यह है कि यूक्रेन की जंग इस साल खत्म होगी या नहीं. इस जंग से बचा जा सकता था. जब 1994 से 2004 के दरमियान लिओनिड कुचमा यूक्रेन के राष्ट्रपति थे, उन्होंने रूस और पश्चिम के साथ रिश्तों में संतुलन बनाकर रखा. उनके बाद 2005 से 2010 तक राष्ट्रपति रहे विक्टर यानुकोविच ने यूक्रेन को पश्चिमी खेमे में धकेल दिया. उनके उत्तराधिकारी विक्टर यानुकोविच ने तराजू का दूसरा पलड़ा चुना और भालू को गले लगाया. अगर यूक्रेन ने संवैधानिक तटस्थता का ऐलान किया होता, तो रूस 2014 में क्रीमिया को नहीं हड़पता और अगर यूक्रेन ने डोनबास पर मिंस्क-2 समझौते को लागू किया होता तो रूस 2022 में यूक्रेन पर हमला नहीं करता. तटस्थता को खारिज करने की यूक्रेन की राजनैतिक नासमझी रूस को अंतरराष्ट्रीय कानूनों और यूक्रेन की संप्रभुता और अखंडता की गारंटी देने वाले 1994 के समझौते का उल्लंघन करने के अपराध से बरी करने का बहाना नहीं है. यूक्रेन का युद्ध दिखाता है कि युद्ध विकल्प का मामला है. युद्ध महज भूगोल, अर्थव्यवस्था या नियति की वजह से नहीं होता. युद्ध नेताओं की तरफ से चुने गए विकल्पों की वजह से होता है.
अगर युद्ध विकल्प का मामला है, तो विकल्पों का मामला तो शांति भी हो सकती है. यूएस जॉइंट चीफ ऑफ स्टाफ के चेयरमैन जनरल मार्क मिली ने यूक्रेन को बातचीत से व्यावाहारिक समाधान निकालने की सलाह दी थी. यूक्रेन के नेताओं ने उन्माद भरे ढंग से जवाब दिया, ठीक उसी तरह जैसा उन्होंने तब किया था जब 2013 में हेनरी किसिंजर ने संवैधानिक तटस्थता की सिफारिश की थी. पेंटागन के शीर्ष आका की समझदारी भरी बात के बावजूद संयुक्त राष्ट्र अमेरिका यूक्रेन को हथियार की आपूर्ति कर रहा है. इसके नतीजतन यूक्रेन में भविष्य के युद्ध के तीन संभावित परिदृश्य उभरते हैं.
परिदृश्य 1: युद्धविराम और शांति प्रक्रिया
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