एनसीईआरटी के निदेशक दिनेश सकलानी ने दावा किया है कि कोविड के बाद स्कूल लौटने वाले छात्रों पर पाठ्यसामग्री का भार कुछ कम करने के लिए एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों से कुछ "फालतू" अध्यायों और खंडों को हटाया गया है. लेकिन पाठ्य सामग्री को हटाए जाने का संबंध छात्रों पर भार घटाने से कम और हिंदू सांप्रदायिक राजनीति से अधिक है. इतिहास के सिद्धांतों, इसकी वैज्ञानिक प्रक्रियाओं और 'साक्ष्य के तर्कों' का उल्लंघन करते हुए, भारत की सत्ता में बैठे बहुसंख्यकों की राजनीति करने वाली ताकतों ने आज तथ्यों को पूरी तरह से झूठलाते हुए या उसकी जगह आस्था, विश्वास और पौराणिक कथाओं को जोड़ने की अवैज्ञानिक प्रथा का सहारा लिया है. सांप्रदायिक विचारधारा इतिहास के इस विशेष संस्करण के मूल में है, जिसे सांप्रदायिकतावादी बहुत लंबे समय से प्रचारित करने की कोशिश कर रहे हैं. वास्तव में, हिंदू सांप्रदायिकतावादियों ने भारतीय समाज को धार्मिक पहचान के आधार पर गहराई से विभाजित होने की उसी ब्रिटिश औपनिवेशिक धारणा का प्रचार किया, जो धार्मिक, राजनैतिक, सामाजिक या सांस्कृतिक और अन्य सभी पहचानों को एक खास मंशा से परिभाषित करती है. इस प्रकार धार्मिक सांप्रदायिक विचारधारा और इतिहास की सांप्रदायिक व्याख्या का जन्म हुआ. हिंदू सांप्रदायिकतावादियों ने जेम्स मिल से प्रेरित भारतीय इतिहास की औपनिवेशिक समझ को स्वीकार किया. मिल ने इतिहास को धार्मिक आधार पर विभाजित किया और 'हिंदू शासन' के बाद 'दमनकारी मुस्लिम शासन' और फिर 'ब्रिटिश राज' को उस दमन से एक 'उद्धारक' के रूप में प्रस्तुत किया. औपनिवेशिक काल में उनकी राजनीति अंग्रेजों के साथ गठबंधन करके मुसलमानों के साथ-साथ हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए संघर्षरत भारतीय राष्ट्रवादियों से लड़ने पर केंद्रित रही.
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