दीप्ति चहाण
40 वर्ष, पेटेंट एडवोकेट, मुंबई
खौफनाक मर्ज
दीप्ति को छह साल एमडीआर टीबी का इलाज करवाना पड़ा. उन्हें जो दवाइयां लिखी गई थीं, उनके बहुत तगड़े साइड इफेक्ट थे. एक दवाई साइक्लोसेरीन आत्मघाती और चिड़चिड़ा बनाती है और आप सुध-बुध खो बैठते हैं. परिवार को लगता है कि मरीज हताशा की वजह से ऐसा कर रहा है, पर वह इसलिए कर रहा होता है क्योंकि उसे वह दवाई दी जा रही हैं. एक और दवाई क्लोफाजिमीन की वजह से उनकी त्वचा काली पड़ गई और रंग-रूप में आ रहे भीषण बदलावों ने उन्हें डरा दिया. दीप्ति कहती हैं, "एमडीआर के साइड इफेक्ट भयंकर हो सकते हैं और कम ही मरीजों को इसके बारे में ठीक तरह से बताया जाता है. अब मैं वह काउंसिलिंग देने की कोशिश कर रही हूं जो मुझे नहीं मिली."
यह स्वाभाविक ही था कि भारत ने हाल ही में वाराणसी में वन वर्ल्ड टीबी समिट की मेजबानी करने का बीड़ा उठाया दुनिया में टीबी यानी तपेदिक के सबसे ज्यादा मामले हमारे यहां जो हैं. हर साल दुनिया में टीबी का शिकार होने वाले एक करोड़ लोगों में से एक-चौथाई हमारे यहां होते हैं, बल्कि इस बीमारी की वजह से हम साल में चार लाख जानें गंवा देते हैं, जो दुनिया में होने वाली सालाना 14 लाख मौतों का करीब एक-तिहाई है. वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र के लक्ष्य से पांच साल पहले 2025 तक टीबी को खत्म करने की भारत की प्रतिबद्धता दोहराई. भारत से तपेदिक खत्म करने की कोशिशों के दायरे को आखिरी गांव तक बढ़ाने के लिए उन्होंने टीबी मुक्त पंचायत पहल की शुरुआत भी की.
Esta historia es de la edición May 17, 2023 de India Today Hindi.
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