महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई से यही करीब 350 किमी दूर सांगली जिले में मोहित्यांचे वडगांव नामक एक गांव है. यहां के स्थानीय देवता भैरवनाथ मंदिर के शिखर से रोज शाम ठीक 7 बजे पूरे 45 सेकंड तक सायरन बजता रहता है. ऐसे सायरन बजना इस इलाके में कोई असामान्य बात नहीं. यह राज्य की चीनी मिलों का इलाका जो है, जहां मिलों के सायरन रोज यह बताने के लिए बजते हैं कि काम की पाली अब शुरू हो रही है या अब खत्म हो रही है. मगर मोहित्यांचे वडगांव के मंदिर का यह सायरन यहां के लोगों के लिए दूसरा ही संदेश लेकर आता है. पहले होता यह था कि दिन भर की कड़ी मेहनत के बाद थकान उतारने और हल्के होने के लिए शाम को लोग सोशल मीडिया पर मन बहलाते या टीवी पर ताजातरीन प्राइम टाइम शो या सीरियल देखने लगते. लेकिन, अब ऐसा नहीं होता. ज्यों ही शाम 7 बजे का सायरन बंद होता है, गांव वाले, जो ज्यादातर किसान या चीनी मिलों में कामगार हैं, अगले डेढ़ घंटे के लिए स्क्रीन से दूर हो जाते हैं चाहे वह टेलीविजन हो या फिर मोबाइल. उन्हें बंद कर दिया जाता है. इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से दूर होकर बच्चे पढ़ाई में जुट जाते हैं, नौजवान भी अपना कुछ काम करते हैं और कई लोग बस एक-दूसरे के साथ या तो बैठकी लगाते, गप मारते हैं या फिर अपने परिवार के लोगों के साथ बैठकर बातचीत करते हैं और हंसी-मजाक करते हुए वक्त गुजारते हैं. यह 'डिजिटल डिटॉक्स' यानी डिजिटल लत से मुक्त होने की प्रक्रिया पिछले करीब नौ महीने से न केवल इस गांव के 3,500 बाशिंदों की दिनचर्या का हिस्सा बन गई है, बल्कि धीरे-धीरे इलाके के दूसरे गांव भी इसे अपना रहे हैं.
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ठोकने की यह कैसी नीति
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