अगली पीढ़ी की मशीनें
क्वांटम कंप्यूटर प्रोसेसिंग क्षमता में कई गुना बढ़ोतरी करने की संभावनाओं से ओतप्रोत हैं जिससे जटिल गणनाएं चुटकी में हो सकेंगी. भारत इस उभरती टेक्नोलॉजी की संभावना को साकार करने के लिए रोडमैप के साथ तैयार है।
विरल बीमारी की दवा विकसित करना काफी मुश्किल काम है. इसके लिए लाखों मॉलीक्यूलर कॉम्बिनेशन का विश्लेषण करके पता लगाना होता है कि कौन-सा कॉम्बिनेशन कारगर होगा. सामान्य कंप्यूटरों के जरिए इस काम को करने में सालों लग सकते हैं. मगर क्वांटम कंप्यूटर का लाभ उठाकर फार्मास्यूटिकल फर्म जटिल मॉलीक्यूलर सिम्यूलेशन की रफ्तार कई गुना बढ़ा सकती हैं, ताकि सबसे संभावनाशील दवा की पहचान कई गुना कम वक्त में की जा सके. यह दूसरी क्वाटंम क्रांति है. पहली 1900 के दशक में हुई थी, जब क्वांटम मैकेनिक्स की नई थ्योरियों की बदौलत ऐसी पथप्रदर्शक टेक्नोलॉजी ईजाद की गईं जो आज आम हो गई हैं- जैसे लेजर, एमआरआइ स्कैनर, या यहां तक कि फोटोवोल्टैइक सेल. अब अगला क्षेत्र क्वांटम कंप्यूटिंग है.
यह गेमचेंजर क्यों है
बेंगलुरू में रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट में क्वांटम इन्फॉर्मेशन ऐंड कंप्यूटिंग (क्यूयूआइसी) प्रयोगशाला की प्रमुख प्रो. उर्बशी सिन्हा का कहना है कि यह बिल्कुल अलग ही क्षेत्र है. वे कहती हैं, “क्वांटम कंप्यूटर लैपटॉप की जगह नहीं लेगा, पर कुछ निश्चित कामों की रफ्तार कई गुना बढ़ा देगा." इसलिए उन्हें बनाने की वैश्विक होड़ छिड़ गई है.
क्वांटम कंप्यूटिंग सूचना को रखने के लिए ट्रैप्ड आयन या फोटॉन सरीखे उपआण्विक कणों का प्रयोग करती है. जहां शास्त्रीय अंश 0 या 1 का प्रतिनिधित्व करता है, क्वांटम अंश (क्यूबिट) एक साथ दोनों हो सकता है.
इस सुपरपोजिशन की बदौलत क्वांटम कंप्यूटर सैद्धांतिक तौर पर आण्विक स्तर के जटिल सिम्यूलेशन आज के डिजिटल कंप्यूटर के मुकाबले कहीं ज्यादा तेजी से कर पाता है.
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