सींग पकड़कर सीखने लगे शर्मा
India Today Hindi|August 21, 2024
बहुत अनुभवी न होने के बावजूद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाए गए भजनलाल अपनी काबिलियत साबित करने के लिए हर तरह की अग्निपरीक्षा दे रहे. अब धीरे-धीरे नीतियों पर भी अपनी छाप छोड़ने लगे. एक संजीदा, संतुलित और बड़ी दूरदर्शी सोच वाले नेता के रूप में बन रही छवि
रोहित परिहार
सींग पकड़कर सीखने लगे शर्मा

राजनैतिक जीवन में हर चीज को संतुलित रखने की जरूरत होती है. भले ही हर मोर्चे पर ऐसा संभव न हो पाया हो लेकिन भजन लाल शर्मा ने अपनी सामान्य दिनचर्या में खास देशज अंदाज कायम रखा है-सूर्योदय के साथ ही उठना, फिर अपने विशाल लॉन में थोड़ी देर टहलना, जहां उन्हें अक्सर अपनी दो गायों की सेवा करते देखा जाता है. इसके बाद दिनभर की राजनैतिक व्यस्तता के बीच सादा, घर का बना शाकाहारी भोजन करना. वे अमूमन रात का भोजन जल्दी करने के आदी हैं। लेकिन बैठकों की व्यस्तता की वजह से उन्हें कभी-कभी इसमें देर हो जाती है और कई बार तो ज्यादा देर होने पर वे रात का भोजन नहीं कर पाते. उन्हें आज भी याद है कि अपनी मौज-मस्ती वाली युवावस्था के दौरान उन्हें खाने का कितना शौक हुआ करता था. एक बार तो एक विवाह समारोह में बिना पानी पिए दो दर्जन से ज्यादा लड्डु खाकर शर्त भी जीती थी. दिसंबर 2023 में जब राजस्थान के मुख्यमंत्री पद के लिए एकदम तंबोला स्टाइल में उनका नाम घोषित किया गया तो यह बात बहुत लोगों को हजम नहीं हुई. शर्मा दौड़ में कहीं थे ही नहीं: पहली बार विधायक बना सियासी गलियारों का एक अनजाना-सा चेहरा अचानक एक शीर्ष पद पर आसीन होने जा रहा था. शर्मा ने जैसा इंडिया टुडे के साथ बातचीत में माना कि खुशी के उन पलों के साथ ही उन्हें यह समझते देर नहीं लगी कि राजनीति कैसी 'दोधारी तलवार' हो सकती है.

बहरहाल, उन्हें सबसे ज्यादा दुख तो उस वक्त हुआ जब आम चुनाव में भाजपा ने राज्य की 25 में से 11 सीटें गंवा दीं. शर्मा अभी तक इस पीड़ा से पूरी तरह उबरे नहीं हैं और इससे पल्ला झाड़ने के लिए कोई बहाना भी नहीं गढ़ते. उनके सहयोगी बताते हैं कि 4 जून को नतीजे आने के कई दिनों बाद तक हावभाव से पता चलता था कि उन्होंने इसे निजी नाकामी के तौर पर लिया है. भले ही उम्मीदवारों के चयन या चुनाव अभियान की रणनीति तय करने में उनकी कोई भूमिका नहीं थी. भरतपुर जिले में एक साधारण प्रशासनिक पद पर रहने के दौरान उनका जीवन काफी सरल रहा था. अपने गांव अटारी के सरपंच के तौर पर काम करना उनका आखिरी प्रशासनिक पद था.

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