मेक इन इंडिया' ने स्थानीय स्तर की मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा दिया है लेकिन यह सिर्फ बाहर से लाई ई टेक्नोलॉजी और कलपुर्जों को असेंबल करने का ही काम है. नतीजा, इससे बहुत कुछ हासिल होने वाला नहीं है. अगर हम विकसित राष्ट्र बनने का लक्ष्य रखते हैं तो हमें भारत में डिजाइन और विकास करने, और जहां तक संभव हो, स्थानीय घटकों का इस्तेमाल करने, उत्पादन के लिए मशीनरी बनाने और उत्पादों के लिए आइपीआर में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी रखने की जरूरत है. हमें कम से कम कुछ क्षेत्रों में खुद को टेक्नोलॉजी लीडर्स में शुमार कराना होगा. हम यह कैसे कर सकते हैं? यह जानने के लिए हमें सबसे पहले भारत की ताकत को समझना होगा:
हमारे पास उच्च गुणवत्ता की विशेषज्ञता वाले युवा वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की संख्या बढ़ रही है. उन्होंने बेहतरीन प्रशिक्षण हासिल किया है. अगर इन्हें सही मायने में सहयोग और बढ़ावा मिले तो वे आगे बढ़ने और नेतृत्व करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं.
हमारे पास नए इंजीनियरिंग स्नातकों का एक बड़ा समूह है जो साधारण कॉलेजों से पढ़े होने के बावजूद अच्छे हो सकते हैं. उन्हें लंबे समय तक कड़ी मेहनत करने, एक-दूसरे से सीखने और असंभव चुनौतियों को लेने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए. अच्छी बात यह है कि भारत में ऐसी प्रतिभा की लागत दूसरी जगहों की तुलना में बहुत कम है.
हमारे पास बहुत बड़ा बाजार है, लेकिन सिर्फ किफायती उत्पादों के लिए. इस तरह के उत्पादों को विकसित करने का काम चुनौतीपूर्ण है, अगर हम उनसे निबट पाएं तो टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अग्रणी स्थान हासिल करने की ओर बढ़ सकते हैं.
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