अश्विन करिया के लिए यह बहुत गर्व का क्षण था. कानून के इस पूर्व प्रोफेसर की गुजरात हाइकोर्ट में दायर जनहित याचिका (पीआइएल) गुजरात मानव बलि और अन्य अमानवीय, क्रूर तथा अघोरी प्रथाओं और काला जादू रोकथाम एवं उन्मूलन विधेयक, 2024 के निर्विरोध पारित होने सबब बनी. गुजरात-मुंबई तर्कवादी संघ के संस्थापक प्रो. करिया ने बच्चों की दर्दनाक मौत और अन्य क्रूरताओं की वजह बनीं ऐसी अंधविश्वासी प्रथाओं के खिलाफ दो दशकों से अधिक समय तक चलाए गए अभियान के बाद जनवरी में एक जनहित याचिका दायर की थी. छह महीने के भीतर ही सरकार ने ऐसी अमानवीय प्रथाओं पर लगाम कसने के लिए कानून बनाने का वादा किया और दो महीने बाद अगस्त में विधेयक को सर्वसम्मति से मंजूरी मिल गई.
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मिले सुर मेरा तुम्हारा
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हम दो हमारे तीन!
जनसंख्या में गिरावट की आशंकाओं ने परिवार नियोजन पर बहस को सिर के बल खड़ा कर दिया है, क्या परिवार बड़ा बनाने के पैरोकारों के पास इसकी वाजिब वजहें और दलीलें हैं ?
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बांग्लादेश में हिंदुओं का उत्पीड़न जारी है, दूसरी ओर इस्लामी कट्टरपंथ तेजी से उभार पर है. परा घटनाक्रम भारत के लिए चिंता का सबब
'इससे अच्छा तो झाइदारिन ही थे हम'
गया शहर के माड़रपुर में गांधी चौक के पास एक बैटरी रिक्शे पर बैठी चिंता देवी मिलती हैं. वे बताती हैं कि वे कचहरी जा रही हैं. उनके पास अपनी कोई सवारी नहीं है, सरकार की तरफ से भी कोई वाहन नहीं मिला है.
डीएपी की किल्लत का जिम्मेदार कौन?
3त्तर प्रदेश में आजमगढ़ के किसान वैसे तो कई दिनों से परेशान थे लेकिन 11 दिसंबर को उन्होंने डीएपी यानी डाइअमोनियम फॉस्फेट खाद उपलब्ध कराने की गुहार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक पहुंचा दी.