लगभग छह दशक से मुंबई में लगने वाले नारे 'आवाज कुनाचा?' अर्थात राज किसका तो इसका जवाबी नारा होता था 'शिवसेनाचा' यानी शिवसेना का जो कि देश की व्यावसायिक राजधानी और महाराष्ट्र के एक बड़े हिस्से में इस पार्टी के दबदबे का प्रतीक रहा है. विधानसभा चुनाव में अब और अगले स्तर के सवाल का जवाब मिलेगा कि राज किस शिवसेना का है?
जून 2022 में एकनाथ शिंदे और उनके 39 विधायकों ने शिवसेना को तोड़ दिया और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार गिराकर भाजपा के साथ गठबंधन करके सरकार बना ली. उसके बाद कानूनी लड़ाई में शिवसेना का नाम और धनुष-बाण का चुनाव चिह्न एकनाथ शिंदे गुट को सौंप दिया गया. हालांकि, पार्टी की पहचान ठाकरे ब्रांड शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के पास ही है.
लोकसभा चुनाव में ही यह सवाल सुलझने वाला था कि 'असली शिवसेना' कौन है. लेकिन नतीजे आए तो शिवसेना (यूबीटी) को नौ सीटें और शिंदे के गुट को सात सीटें मिलीं तो मामला तकरीबन बराबरी का रहा था. ठाकरे की शिवसेना ने अपने मुख्य मराठी वोटों को बंटता पाया, जिसकी कमी सहयोगी कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) की बदौलत पूरी हुई, खासकर मुंबई में उसे मुस्लिम वोट लगभग एकतरफा मिले. वह नजारा दिवंगत पार्टी सुप्रीमो बाल ठाकरे के आक्रामक हिंदुत्व और अल्पसंख्यकों के साथ शिवसेना के तल्ख रिश्तों के दिनों से बिल्कुल अलग था.
ठाकरे समर्थकों का दावा है कि शिंदे की 'गद्दारी' और उससे मूल मराठी माणुस मतदाताओं में उपजी सहानुभूति लहर कारगर साबित होगी. उधर, शिंदे समर्थकों का मानना है कि पारंपरिक शिवसेना मतदाता पार्टी के पूर्व विरोधियों के साथ गठबंधन करने और हिंदुत्व के प्रति नरमी से नाखुश है. वे यह भी बताना पसंद करते हैं कि उनके पास भरोसेमंद भाजपा का आधार भी है. लेकिन दिक्कत यह है कि शिंदे शिवसेना ठोस राजनैतिक संगठन से बदले विधायकों और नेताओं का एक ढीला-ढाला समूह है, जिनके बारे में माना जाता है कि मुख्यमंत्री के पद की ताकत ही शिंदे के साथ होने की वजह है. कुर्सी नहीं रही तो शिंदे आकर्षण खो सकते हैं.
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