प्रश्न पूछना, प्रश्नों पर विचार करना, उनके उत्तर ढूंढना जैसे बौद्धिक काम और कौशल सिखाना शिक्षा की जिम्मेदारी है। अपने देश में शिक्षा की ज्यादातर संस्थाएं इस जिम्मेदारी से बचती हैं। करोड़ों बच्चे कई वर्ष स्कूल में बिताकर भी एक अच्छा सवाल पूछना नहीं सीख पाते। कई के मन में अच्छे-पैने सवाल उभरते हैं, पर वे उन्हें पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। स्कूल और कक्षा का माहौल प्रश्न उठाने के लिए प्रोत्साहित नहीं करता। सवाल पूछने वाले लड़के-लड़कियां प्रायः डांट खाते हैं, स्कूल में भी, घर में भी। ' कुछेक शिक्षक प्रश्न सुनने को तैयार लगते हैं, पर वे भी ऐसे प्रश्न सुनने के आदी होते हैं जो कक्षा में पढ़ाई गई बातों को कुछ और स्पष्ट किए जाने की मांग करते हैं। किसी बात के सच को तर्क के घेरे में लाने वाले प्रश्न हमारी कक्षाओं में कम ही सुनने को मिलते हैं।
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