बात उस वक्त की है जब देश के दूसरे राज्यों और अंचलों की तरह मध्य प्रदेश में भी कई राजघराने और जमींदार परिवारों ने राजनीति की तरफ कदम बढ़ाना शुरू कर दिया था। इसका स्वागत राजनैतिक दलों ने उत्साह के साथ किया। समय के साथ कई राजघराने पायदान चढ़ते गए। पिछले छह दशकों से प्रदेश की सियासत में 34 छोटे-बड़े राजघराने सक्रिय हैं। फिलहाल 19 राजघराने ऐसे हैं जिनका कोई न कोई सदस्य विधानसभा चुनाव में फिर उतरने को तैयार है। कुछ को तो राजनैतिक दल उम्मीदवार भी बना चुके हैं।
प्रदेश में ग्वालियर का सिंधिया राजघराना हमेशा से ही राजनीति में सबसे आगे और सबसे सक्रिय रहा है। यह बात और है कि सिंधिया राजघराने का कोई भी सदस्य मुख्यमंत्री की गद्दी पर बैठने सफल नहीं हो पाया, पर राजपरिवार का कोई न कोई सदस्य हमेशा ही केंद्र या राज्य मंत्रिमंडल में बना रहा है। यही वजह है कि चुनाव के दस्तक देते ही सिंधिया राजघराना चर्चा में है। कहते हैं कि शिवराज सरकार की कैबिनेट मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया ने निजी कारणों से चुनाव लड़ने में असमर्थता जताई है। अब चर्चाओं का बाजार गरम है कि बुआ के इनकार के बाद शिवपुरी सीट से भतीजे ज्योतिरादित्य सिंधिया को उतारा जा सकता है।
अगर यशोधरा और ज्योतिरादित्य चुनाव नहीं लड़ते हैं तो शायद यह पहला मौका होगा जब लगभग चार दशक बाद सिंधिया राजघराने का कोई भी सदस्य विधानसभा चुनाव से नदारद होगा। फिर भी, सिंधिया राजघराने का दबदबा 2023 के विधानसभा चुनाव में कायम रहने वाला है। सिंधिया राजघराने का प्रभाव ग्वालियर-चंबल अंचल के अलावा गुना, राजगढ़, अशोक नगर, बीना, विदिशा, इंदौर, उज्जैन जिलों की कई सीटों पर रहा है। 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में चले जाने के बाद पार्टी विधानसभा चुनाव में राजघराने के प्रभाव को भुनाना चाहती है।
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शहरनामा - मधेपुरा
बिहार के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित, अपनी ऐतिहासिक धरोहर, सांस्कृतिक वैभव और प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध मधेपुरा कोसी नदी के किनारे बसा है, जिसे 'बिहार का शोक' कहा जाता है।
डाल्टनगंज '84
जब कोई ऐतिहासिक घटना समय के साथ महज राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का मुद्दा बनकर रह जाए, तब उसे एक अस्थापित लोकेशन से याद करना उस पर रचे गए विपुल साहित्य में एक अहम योगदान की गुंजाइश बनाता है।
गांधी के आईने में आज
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मूर्धन्य कलाकार मोहन अगाशे की शख्सियत के कई पहलू हैं। एक अभिनेता के बतौर उन्होंने समानांतर सिनेमा के कई प्रतिष्ठित निर्देशकों के साथ काम किया। घासीराम कोतवाल (1972) नाटक में अपनी भूमिका के लिए वे खास तौर से जाने जाते हैं। वे मनोचिकित्सक भी हैं। मानसिक स्वास्थ्य पर उन्होंने कई फिल्में बनाई हैं। वे भारतीय फिल्म और टेलिविजन संस्थान (एफटीआइआइ) के निदेशक भी रह चुके हैं। उनके जीवन और काम के बारे में हाल ही में अरविंद दास ने उनसे बातचीत की। संपादित अंशः
एक शांत, समभाव, संकल्पबद्ध कारोबारी
कारोबारी दायरे के भीतर उन्हें विनम्र और संकोची व्यक्ति के रूप में जाना जाता था, जो धनबल का प्रदर्शन करने में दिलचस्पी नहीं रखता और पशु प्रेमी था
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दुनिया की सबसे पुरानी सार्वजनिक परिवहन सेवाओं में एक कोलकाता की ट्राम अब केवल सैलानियों के लिए चला करेगी
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नशे का नया ठिकाना
कीटनाशक के नाम पर नशीली दवा बनाने वाले कारखाने का भंडाफोड़
'करता कोई और है, नाम किसी और का लगता है'
मुंबई पर 2011 में हुए हमले के बाद पकड़े गए अजमल कसाब के खिलाफ सरकारी वकील रहे उज्ज्वल निकम 1993 के मुंबई बम धमाकों, गुलशन कुमार हत्याकांड और प्रमोद महाजन की हत्या जैसे हाइ-प्रोफाइल मामलों से जुड़े रहे हैं। कसाब के केस में बिरयानी पर दिए अपने एक विवादास्पद बयान से वे राष्ट्रीय सुर्खियों में आए थे। उन्होंने 2024 में भाजपा के टिकट पर उत्तर-मध्य मुंबई से लोकसभा चुनाव लड़ा और हार गए। लॉरेंस बिश्नोई के उदय और मुंबई के अंडरवर्ल्ड पर आउटलुक के लिए राजीव नयन चतुर्वेदी ने उनसे बातचीत की। संपादित अंश:
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मायापुरी में अपराध भी फिल्मी अंदाज में होते हैं, बस एक हत्या, और बी दशकों की कई जुर्म कथाओं पर चर्चा का बाजार गरम