चुनावी फासले
Outlook Hindi|May 13, 2024
पिछले एक दशक में हुए चुनावों से पता चलता है कि उत्तर और दक्षिण के बीच सियासी दूरी बढ़ती जा रही है, मौजूदा आम चुनाव इस विभाजन की पुष्टि करते हैं
हरिमोहन मिश्र
चुनावी फासले

चानक बढ़े सूरज के तेवरों के साथ सियासी तुर्शी भी छलांग ले रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले चरण (19 अप्रैल) के खत्म होने के साथ मानो सियासी उफान उतावला करने लगा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 21 अप्रैल को राजस्थान की एक सभा में कांग्रेस के घोषणा-पत्र का जिक्र कुछ इस अंदाज में किया, जिससे ध्रुवीकरण को हवा मिलने की उम्मीद पाली जा सकती है। उधर, कांग्रेस सहित करीब 27 क्षेत्रीय दलों ने अपनी एकजुटता के प्रदर्शन के लिए दूसरी रैली रांची में की। दरअसल पहले चरण के मतदान से कुछ ऐसे संकेत मिले, जिससे कमोबेश कई तरह के फासले गहरे होते दिखने लगे। एक तो, चुनाव में लोगों की उदासीनता, खासकर हिंदी पट्टी में सियासी पार्टियों की पेशानी पर बल पैदा कर रही है। दूसरी तरफ उत्तर और दक्षिण की सियासी हवा अलग दिशाओं में बहती नजर आ रही है। ऐसे में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और विपक्षी इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव एलायंस ('इंडिया') दोनों में अपने-अपने लाव-लश्कर, रणनीतियों को मजबूत करने या नई शक्ल देने की जरूरत का गहरा एहसास जग गया। इसकी पहली वजह तो पहले चरण की सबसे विस्तृत और सबसे ज्यादा 102 संसदीय सीटों पर मतदान प्रतिशत में चौंकाने वाली गिरावट है। इस अंक के बाजार में आने तक दूसरे चरण की 89 सीटों पर वोटिंग (26 अप्रैल) खत्म होने को होगी। ये चरण दोनों ही दावेदार गठबंधनों के लिए अहम हैं। पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश के अलावा महाराष्ट्र में मतदान प्रतिशत में औसतन पांच प्रतिशत और कई जगहों पर दस प्रतिशत तक गिरावट देखी गई (देखें, चार्ट), लेकिन दक्षिण के तमिलनाडु और बंगाल तथा पूर्वोत्तर के राज्यों में अपेक्षाकृत काफी कम औसतन दो प्रतिशत ही कमी दिखी।

कम मतदान का दंश

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