वर्षों से व्यापम से लेकर कई परीक्षाओं में कथित धांधली के लिए चर्चित रहा मध्य प्रदेश 'नीट' घोटाले के मौसम में किसी तरह की धांधली से भला कैसे अछूता रह सकता था। व्यापम की तर्ज पर अब मध्य प्रदेश में नर्सिंग घोटाला सामने आया है। एक ओर संसद के भीतर कांग्रेसनीत विपक्ष नरेंद्र मोदी की सरकार को नीट पर घेरने में जुटा हुआ है तो दूसरी ओर मध्य प्रदेश की विधानसभा में मानसून सत्र के खुलते ही भाजपा की सरकार कांग्रेस के निशाने पर आ गई है।
इस नए घोटाले में युवाओं के भविष्य के साथ धोखे और धांधली का सरकारी खेल उजागर हुआ है। दिलचस्प यह है कि राज्य में नर्सिंग महाविद्यालय घोटाले की जांच कर रहे केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के अधिकारी ही धांधली में शामिल पाए गए हैं। यानी धांधली के दोषियों को खोजने की जिम्मेदारी जिन्हें सौंपी गई, वे ही मामले को रफा-दफा करने में जुट गए। इसका खुलासा भी सीबीआइ ने ही किया कि उसके कई अधिकारियों ने पड़ताल के बाद अनुकूल रिपोर्ट देने के लिए हर शिक्षण संस्थान से कथित रूप से रिश्वत ली थी। यह मामला एक याचिका के जरिये जबलपुर हाइकोर्ट में पहुंचा था। इसके बाद इस धोखे और धांधली को उजागर करने की जिम्मेदारी सीबीआइ को सौंपी गई और नर्सिंग परीक्षाओं पर रोक लगा दी गई थी।
नर्सिंग कॉलेज घोटाले की आवाज असेंबली तक पहुंच चुकी है और कांग्रेस सूबे के मंत्री विश्वास सारंग का इस्तीफा मांग रही है। मानसून सत्र के पहले दिन 2 जुलाई को कांग्रेस विधायक दल के नेता उमंग सिंघार ने इस घोटाले पर चर्चा की मांग रखी, जिसे संसदीय मामलों के मंत्री कैलाश विजवर्गीय ने यह कह कर ठुकरा दिया कि मामला अभी न्यायालय में है इसलिए इस पर चर्चा नहीं की जा सकती। सत्र के दूसरे दिन कांग्रेस के विधायक लैब कोट पहन कर सदन में पहुंचे और भाजपा को इस घोटाले का सीधा आरोपी बताते हुए हंगामा काट दिया।
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पिछले मानसून में भीषण तबाही झेलने के बाद इस जुलाई के अंत में फिर आई विनाशक बाढ़, बादल फटने की घटनाओं और उसकी वजह से हुआ जानमाल का नुकसान हिमाचल प्रदेश के लोगों के लिए दोहरा सदमा साबित हुआ है। ये घटनाएं स्पष्ट वैज्ञानिक साक्ष्य हैं कि किस तरह ना हिमालयी क्षेत्र को जलवायु परिवर्तन और इनसानी गतिविधियां प्रभावित कर रही हैं। सूबे के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू भी इस बात को अब मान रहे हैं कि इलाके में गर्मी अपेक्षा से ज्यादा तेजी से बढ़ती जा रही है, जिसके चलते वनक्षेत्र में कमी आ रही है, हिमनद पिघल रहे हैं और बादल फटने, बाढ़ और भूस्खलन जैसी घटनाएं अक्सर सामने आ रही हैं। राज्य में टिकाऊ वृद्धि के समक्ष जलवायु संबंधी इन खतरों और चुनौतियों के मद्देनजर वे 2026 तक हिमाचल को 'हरित प्रदेश' बनाने की बात करने लगे हैं। उन्होंने 2032 तक राज्य को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने की भी बात की है। शिमला में आउटलुक के अश्वनी शर्मा के साथ इन मसलों पर उनसे हुई बातचीत के अंश:
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