महाकाल और महाकाली साधना
Jyotish Sagar|October 2022
दीपावली पर विशेष
मदन लाल
महाकाल और महाकाली साधना

बिना शक्ति के शक्तिमान शव के समान है और शक्तिमान के बिना शक्ति स्वयं कोई भी कार्य करने में असमर्थ है। संसार में जो कुछ भी घटित हो रहा है, हो चुका है और होने वाला है, इन सबकी जानकारी प्राप्त करने की क्षमता महाकाल और महाकाली से प्राप्त है। अवतार चाहे विष्णु का हो या शिव का, उसके मूल में साधना ही है।

हाकाल और महाकाली की साधना गुप्त साधना है। यह साधना हर कोई व्यक्ति नहीं कर सकता। जिस प्रकार दस महाविद्याओं की साधना है, उसी प्रकार दस महारुद्र की भी साधना है। महाकाल और महाकाली की साधना में भ्रूमध्य स्थित आज्ञाचक्र के मध्य में एक जव के आकार का छिद्र है, जिसे योग की भाषा में ‘तीसरा नेत्र' भी कहते हैं। उस छिद्र पर ध्यान केन्द्रित करने पर चेतन मन का अस्तित्व उसका स्थान ग्रहण करने लगता है। उस समय मस्तिष्क तरंगों का प्रतिमान बदलने लगता है तथा जैव विद्युत् शक्ति में काफी वृद्धि होने लगती है तथा साधक को दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होना प्रारम्भ हो जाता है।

इस ब्रह्माण्ड के सदृश्य असंख्य ब्रह्माण्ड हैं। इनका रहस्य पाना अति कठिन है। सभी का सह अस्तित्व है और प्रत्येक ब्रह्माण्ड में ब्रह्मा, विष्णु और शिव (महाकाल) हैं, जिन पर उसकी सृष्टि, स्थिति और संहार का उत्तरदायित्व है। आगम ग्रन्थों में शक्तियों का उल्लेख इस प्रकार किया गया है : पराशक्ति, आदिशक्ति, इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति, बाला, अन्नपूर्णा, बगला, तारा, वाग्वादिनी, परागायत्री, सिद्धलक्ष्मी, स्वयंवरा, नकुली, तुरंगारूढ़ा, कुरूकुल्ला, रेणुकी, सम्पतकरी, साम्राज्यलक्ष्मी, पद्मावती, शिवा, दुर्गा, काली, भद्राकृति, कालरात्रि, छिन्नमस्ता, भद्रकाली, कालकण्ठी एवं सरस्वती आदि अनेकानेक नाम हैं। करोड़ों कल्पों में भी इनका वर्णन करना असम्भव है।

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