प्राणमय कोष के भीतर और इसमें व्याप्त एक और शरीर है जो प्राणमय कोष का आत्मा है। इसको 'मनोमय कोष' कहते हैं। ज्ञानेन्द्रियाँ और मन इसके अवयव हैं।
{श्रीमद् आद्य शंकराचार्यजी के अनुसार 'ज्ञानेन्द्रियाँ और मन ही 'मैं, मेरा' आदि विकल्पों का हेतु 'मनोमय कोष' है, जो नामादि भेद-कलनाओं से जाना जाता है और बड़ा बलवान है तथा पूर्व-कोषों को व्याप्त करके स्थित है।’
(विवेक चूड़ामणि : १६९)}
इस मनोमय कोष में अहंबुद्धि करनेवाला जो व्यापी चैतन्य है उसको 'मनोमय पुरुष' कहते हैं।
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