गुरुकृपा का अद्भुत चमत्कार
उस समय की बात है जब मैं आश्रम में समर्पित नहीं हुई थी। उल्हासनगर (महाराष्ट्र) के पास पूज्य बापूजी का सत्संग था। मैं वहाँ गयी थी सत्संग के बाद उल्हासनगर जाने के लिए मैं आश्रम की प्रचार गाड़ी में बैठ गयी। मेरे साथ कुछ और साधक भी थे।
थोड़ी दूर ही चले थे कि गाड़ी के ब्रेक फेल हो गये। बड़ी दुर्घटना से बचने के लिए ड्राइवर ने गाड़ी एक जगह ठोक दी। अन्य साधक सुरक्षित रहे किंतु मैं जहाँ बैठी थी उसके ठीक ऊपर रखे कुकर, तपेला आदि बर्तन मेरे सिर पर गिरे, जिसके कारण सिर पर काफी चोट आयी।
एक भाई ने पूछा : "रेखा बहन ! आप ठीक तो हो न?"
मुझे कुछ समझ नहीं आया कि वे भाई क्या कह रहे हैं। मैंने कहा : "कौन रेखा बहन? कहाँ हूँ? आप मुझे कहाँ ले जा रहे हो?" मेरी याददाश्त जा चुकी थी।
उन भाई ने कहा : "आप बापूजी का सत्संग सुन के हमारे साथ उल्हासनगर जाने के लिए गाड़ी में बैठी थीं।" मैं निश्चेष्ट थी।
मेरी अवस्था देख सब लोग चिंतित हो गये थे। कुछ देर बाद उन भाई ने मेरे कान पर फोन लगाया तो आवाज आयी : "रेखा!...."
उस आवाज में न जाने कैसी चमत्कारिक शक्ति थी कि एकाएक मेरी खोयी हुई स्मृति ऐसे लौट आयी मानो मुझे कुछ हुआ ही नहीं हो। मेरे मुख से निकला : "जी बापूजी !”
Esta historia es de la edición September 2024 de Rishi Prasad Hindi.
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ऋषि प्रसाद प्रतिनिधि।