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बिबिया
Naye Pallav
|Naye Pallav 17
अपने जीवनवृत्त के विषय में बिबिया की माई ने कभी कुछ बताया नहीं, किन्तु उसके मुख पर अंकित विवशता की भंगिमा, हाथों पर चोटों के निशान, पैर का अस्वाभाविक लंगड़ापन देखकर अनुमान होता था कि उसका जीवन-पथ सुगम नहीं रहा।

मद्यप और झगड़ालू पति के अत्याचार भी संभवतः उसके लिए इतने आवश्यक हो गए थे कि उनके अभाव में उसे इस लोक में रहना पसंद न आया। मां-बाप के न रहने पर बालिका की स्थिति कुछ अनिश्चित-सी हो गई। घर बड़ा, भाई कन्हई, भौजाई और दादी थी। दादी बूढ़ी होने के कारण पोती की किसी भी त्रुटि को कभी अक्षम्य मानती थी, कभी नगण्य। ननद-भौजाई के संबंध में परंपरागत वैमनस्य था और बीच के कई भाई-बहिन मर जाने के कारण सबसे बड़े भाई और सबसे छोटी बहिन में अवस्था का इतना अंतर था कि वे एक-दूसरे के साथी नहीं हो सकते थे।
संभवतः सहानुभूति के दो-चार शब्दों के लिए ही बिबिया जब तब मेरे पास आ पहुंचती थी। उसकी मां मुझे दिदिया कहती थी। बेटी मौसीजी कहकर उसी संबंध का निर्वाह करने लगी।
साधारणतः धोबियों का रंग सांवला पर मुख की गठन सुडौल होती है। बिबिया ने गेहुएं रंग के साथ यह विशेषता पाई थी। उस पर उसका हंसमुख स्वभाव उसे विशेष आकर्षण दे देता था। छोटे-छोटे सफेद दांतों की बत्तीसी निकली ही रहती थी। बड़ी आंखों की पुतलियां मानो संसार का कोना-कोना देख आने के लिए चंचल रहती थीं। सुडौल गठीले शरीर वाली बिबिया को धोबिन समझना कठिन था; पर थी वह धोबिनों में भी सबसे अभागी धोबिन।
ऐसी आकृति के साथ जिस आलस्य या सुकुमारता की कल्पना की जाती है, उसका बिबिया में सर्वथा अभाव था। वस्तुतः उसके समान परिश्रमी खोजना कठिन होगा। अपना ही नहीं, वह दूसरों का काम करके भी आनंद का अनुभव करती थी। दादी की मुट्ठी से झाडू खींचकर वह घर-आंगन बुहार आती, भौजाई के हाथ से लोई छीनकर वह रोटी बनाने बैठ जाती और भाई की उंगलियों से भारी स्त्री छुड़ाकर वह स्वयं कपड़ों की तह पर स्त्री करने लगती। कपड़ों में सज्जी लगाना, भट्टी चढ़ाना, लादी ले जाना, कपड़े धोना-सुखाना आदि कामों में वह सब से आगे रहती।
Esta historia es de la edición Naye Pallav 17 de Naye Pallav.
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