कुछ लोगों को यह थोड़ा अजीब लगा. ऐसा नारा आमतौर पर मुख्यमंत्री पद के किसी संभावित उम्मीदवार के लिए लगाया जाता है. लेकिन पार्टी में जो लोग मुख्यमंत्री के इरादों को भांपने के दावे करते हैं, उनका मानना है कि मुख्यमंत्री के इस कदम में भविष्य के कई निहितार्थ छुपे हैं. सोरेन कई कानूनी चुनौतियों से जूझ रहे हैं, जिनमें उन्हें विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य ठहराए जाने की संभावना शामिल है. एक खनन पट्टे पर लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 का उल्लंघन करने के लिए क्या सोरेन को विधायक के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया जाना चाहिए, इस पर चुनाव आयोग ने पिछले महीने राज्यपाल रमेश बैस को अपनी सिफारिश भेजी थी.
सोरेन की मुख्य प्रतिद्वंद्वी भाजपा ने मुख्यमंत्री के खिलाफ राज्यपाल के पास याचिका दायर की थी, जिन्होंने इसे चुनाव आयोग को भेज दिया था. बैस ने अभी तक यह खुलासा नहीं किया है कि आयोग ने उस पर क्या निर्देश दिए हैं, पर माना जाता है कि मुख्यमंत्री के रूप में सोरेन के दिन ज्यादा नहीं बचे हैं. वे झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन की सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. 5 सितंबर को मुख्यमंत्री ने एकतरफा विश्वास प्रस्ताव पेश किया और 82 सदस्यीय विधानसभा (एक मनोनीत एंग्लो-इंडियन सदस्य सहित) में 48 वोट हासिल करके इसे जीत लिया. भाजपा के पास 26 और उसकी सहयोगी आजसू पार्टी के दो विधायक हैं.
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