रुस की यूक्रेन में "विशेष सैन्य कार्रवाई" को सात माह पूरे हो गए. "बाकी" दुनिया की मनोदशा बयान करते हुए सबसे जोरदार बात डॉ. एस. जयशंकर ने हाल ही में कही, "यूरोप को अपने इस यकीन से उबरना होगा कि उसकी परेशानियां दुनिया की परेशानियां हैं, पर दुनिया की परेशानियां उसकी नहीं हैं." कुछ हजार मील दूर बैठा भारत अधिकांश दुनिया की तरह यूरोप में चल रहा सत्ता संघर्ष देख रहा है, जिसके उसकी अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर पड़ रहे हैं.
सात माह के रणनीतिक छापामार हमलों, स्थानीय लड़ाइयों और अहम सैन्य नुक्सानों के बाद साफ हो गया कि रूस की दिलचस्पी के इलाके कौन-से हैं. ये यूक्रेन के पूर्वी छोर के इलाके हैं जो रूस की सीमा से सटे हैं, जिनमें मुख्य हैं डोनेट्स बेसिन, या संक्षेप में डानबास, और ब्लैक सी से सटे यूक्रेन के कुछ हिस्से, जो क्रीमिया के नजदीक हैं. इनमें से कई में रूसी जातीय आबादी बड़ी तादाद में है. हाल में करवाए गए जनमत संग्रह के बाद इनमें से चार इलाके जल्द रूस से "जुड़" जाएंगे और रूसी भूभाग बन जाएंगे. जनमत संग्रह युद्ध में एक बड़ा मोड़ है. अपने देश की रिजर्व सेना के सैनिकों को आंशिक रूप से आगे बढ़ने की रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की घोषणा से यह भी संकेत मिला कि मॉस्को ने यूक्रेन में अपने मकसद आगे बढ़ाना ठान लिया है.
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