कानून की डिग्री होने के बाद भी तारा रंजन पटनायक ने तय किया कि वे अपने पिता का कानूनी पेशा नहीं अपनाएंगे. तब तारा को थोड़ा अंदेशा तो था लेकिन इस वजह से उनका अपने पिता से कोई टकराव नहीं हुआ. हालांकि जब उन्होंने यह समझाने की कोशिश की कि वैकल्पिक करियर के तौर पर वे गहरे समुद्र में ट्रॉलर से मछली पकड़ने पर विचार कर रहे हैं, तो उनके पिता के माथे पर अविश्वास और चिंता की गहरी लकीरें खिंच आईं. यह देखकर तारा रंजन फौरन समझ गए कि इस करियर का सफर उन्हें अकेले तय करना पड़ेगा और पिता से कोई मदद नहीं मिलने वाली. मगर 1970 के दशक के आखिरी सालों में ट्रॉलर समुद्र में उतारने के काम में अपने दोस्तों के साथ रोमांचक मौज-मस्ती और रोज 25,000 रुपए की कमाई इतनी लुभावनी थी कि छोड़ना आसान न था.
सरकार मत्स्यपालन में किस्मत आजमाने के लिए बेरोजगार युवाओं को बढ़ावा और आसान कर्ज दे रही थी. निजी निवेश के तौर पर 5,000 रुपए अपने कजिन से उधार लेकर और ओडिशा राज्य वित्त निगम से 2 लाख रुपए का कर्ज लेकर तारा ने ट्रॉलर खरीदा और समुद्र में गोता लगा दिया. वे बताते हैं, "कारोबार शुरुआत से ही उतार-चढ़ावों से भरा था. या तो मौसम नागवार होता या मछुआरे बाहर निकलने से कतराते. मुझे भारी घाटा हुआ और तब मैंने कारोबार के बुनियादी नियम सीखे - नाकामी से सीखने और एकाग्रता बनाए रखने का फायदा होता है."
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