उद्धारक की तलाश में रेणु परिकथा
India Today Hindi|March 01, 2023
बिहार की राजधानी पटना के राजेंद्र नगर मोहल्ले के वैशाली गोलंबर के चारों तरफ पीले रंग की पुरानी हाउसिंग कॉलोनियां हैं. यह पटना शहर की सबसे पुरानी हाउसिंग कॉलोनियों में से है.
पुष्यमित्र
उद्धारक की तलाश में रेणु परिकथा

इसी कॉलोनी के बी ब्लॉक के 30 नंबर फ्लैट में कभी हिंदी के मशहूर कथाकारों में से एक फणीश्वरनाथ रेणु रहा करते थे. आज यह सूना पड़ा है. फ्लैट की बाहरी दीवारों का पलस्तर उखड़ गया है, अंदर कमरे में बीम में दरार पड़ने लगी हैं. इस पुराने और जर्जर फ्लैट में 2009 तक रेणु की तीसरी पत्नी लतिका रहा करती थीं. अब यहां रेणु और लतिका के इस्तेमाल किए गए पुराने फर्नीचर, दीवारों पर टंगी तस्वीरें, पुराने बरतन, रेणु के कुर्ते, बंडी, लुंगी, गमछे, उनका चश्मा, शेविंग सेट और ऐसी ही दूसरी चीजें रखी हुई हैं. इस खस्ताहाल फ्लैट में ऐतिहासिक महत्व की ये दुर्लभ चीजें यूं ही पड़ी हैं. हिंदी के इस नामचीन लेखक के व्यक्तिगत इस्तेमाल की इतनी चीजें यहां हैं कि एक ढंग का संग्रहालय तैयार हो सकता है. मगर इनकी सुधि लेने वाला कोई नहीं है.

पुराने ढंग के बने इस फ्लैट में दरवाजे से अंदर घुसने के बाद एल आकार का गलियारा है. दो कमरे, किचन, एक स्टोर रूम और एक शौचालय. बताते हैं रेणु परती परिकथा के प्रकाशन के बाद इस फ्लैट में रहने आए थे. इस उपन्यास को लिखते वक्त वे लतिका के साथ इलाहाबाद और बनारस में रहे थे. लतिका उनकी तीसरी पत्नी थीं, जो पटना के पीएमसीएच में नर्स थीं. रेणु की पहली पत्नी का देहांत हो गया था और दूसरी पत्नी पद्मा अररिया जिले के उनके गांव औराही हिंगना में रहती थीं. यह फ्लैट लतिका ने ही खरीदा था. 2009 तक वे इसमें रहीं. बुढ़ापा आने पर वे भी औराही हिंगना चली गईं. 2011 में वहीं उन्होंने अंतिम सांस ली.

रेणु ने अपने आखिरी चर्चित रिपोर्ताज पटना-जलप्रलय में इस फ्लैट के बारे में विस्तार से लिखा है. यह पटना शहर में 1975 में आई भीषण बाढ़ का आंखों देखा हाल है, जो 26 अक्तूबर, 1975 को दिनमान में छपा और फिर उनके रिपोर्ताज संग्रह समय की शिला पर में.

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