ठहाके, म्यूजिक और सबसे प्रेरक, मजेदार और सकारात्मक इन्फ्लूएंसर्स के साथ जश्न की एक शाम-इंडिया टुडे ग्रुप और आरपीजी ग्रुप ने अपने खुशी की खोज अभियान के दूसरे सीजन का समापन 25 मार्च को मुंबई में हैपीनेस फेस्ट ऐंड अवॉर्ड्स के साथ कुछ इसी अंदाज में किया.
इससे पहले, दोनों ग्रुप साल 2022 में खुशी की में खोज लॉन्च करने के मौके पर एक साथ आए थे, जो लोगों को चिंताओं और आशंकाओं में घेरने वाली कोविड-19 महामारी के बाद एक बेहद जरूरी पहल थी. दरअसल, ऐसी कठिन परिस्थितियों में शिद्दत से महसूस किया गया कि यही इस सवाल का जवाब खोजने का सही समय है कि आखिर लोगों की खुशियों की कुंजी कहां छिपी है. विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए कोई कैसे आगे बढ़ता है और उल्लास के बीच जीवन के नए अर्थ खोजता है?
इस साल, यह सवाल अपने दूसरे सीजन में पहुंचा और मुख्य तौर पर तीन आयोजनों के इर्द-गिर्द केंद्रित रहा. सबसे पहले, तो जनवरी में इंडिया टुडे पत्रिका ने एक विशेषांक निकाला- 'द सीक्रेट ऑफ हैपीनेस' और इसमें संतों, मशहूर हस्तियों और परोपकारी कार्यों में जुटे लोगों की प्रेरणादायी, प्रभावशाली और भावनात्मक अंतर्दृष्टि रेखांकित की गई जो खुश रहने के विभिन्न रास्ते सुझाने और उन्हें खोजने के तरीके बताने पर आधारित थी. फिर अगले माह पहली बार इंडिया टुडे- आरपीजी ग्रुप ने हैपीनेस ऐट वर्कप्लेस समिट ऐंड अवॉर्ड्स का आयोजन किया गया जिससे एक व्यापक सर्वे के आधार पर कर्मचारियों के अनुकूल जगह और नीतियां बनाने वाली कंपनियों को नई पहचान मिली.
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परदेस में परचम
भारतीय अकादमिकों और अन्य पेशेवरों का पश्चिम की ओर सतत पलायन अब अपने आठवें दशक में है. पहले की वे पीढ़ियां अमेरिकी सपना साकार होने भर से ही संतुष्ट हो ती थीं या समृद्ध यूरोप में थोड़े पांव जमाने का दावा करती थीं.
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सांफ्ट पावर से लेकर हार्ड कैश, हाई डिजाइन से लेकर हाई फाइनेंस आदि के संदर्भ में बात करें तो दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह भारत की शीर्ष स्तर की कला हस्तियां भी भौतिक सफलता और अपनी कल्पनाओं को परवान चढ़ाने के बीच एक द्वंद्व को जीती रहती हैं.
सपनों के सौदागर
हम ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां मनोरंजन से हौवा खड़ा हो है और उसी से राहत भी मिलती है.
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अलहदा और असाधारण शख्सियतें
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महानता के दो रूप हैं. एक वे जो अपने पेशे के दिग्गजों के मुकाबले कहीं ज्यादा चमक और ताकत हासिल कर लेते हैं.
बोर्डरूम के बादशाह
ढर्रा-तोड़ो या फिर अपना ढर्रा तोड़े जाने के लिए तैयार रहो. यह आज के कारोबार में चौतरफा स्वीकृत सिद्धांत है. प्रतिस्पर्धा से प्रेरित होकर भारत के सबसे ताकतवर कारोबारी अगुआ अपने साम्राज्यों को मजबूत कर रहे हैं. इसके लिए वे नए मोर्चे तलाश रहे हैं, गति और पैमाने के लिए आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस सरीखे उथल-पुथल मचा देने वाले टूल्स का प्रयोग कर रहे हैं और प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए नवाचार बढ़ा रहे हैं.
देश के फौलादी कवच
लबे वक्त से माना जाता रहा है कि प्रतिष्ठित शख्सियतें बड़े बदलाव की बातें करते हुए सियासी मैदान में लंबे-लंबे डग भरती हैं, वहीं किसी का काम अगर टिकता है तो वह अफसरशाही है.