तिरुवनंतपुरम के 36 वर्षीय राकेश बी. एस. 34 बरस के थे जब उनकी पत्नी ने स्थिति- विशेष में उनके गूंगे हो जाने का इलाज करवाने का फैसला किया. दरअसल, लोगों से मिलने-जुलने और बतियाने के डर से उन्हें घबराहट होती. इस वजह से कुछ खास मौकों पर वे बिल्कुल बोल ही नहीं पाते. उन्हें पता चला कि उनकी भी समझ में न आने वाले इस बर्ताव की एक वजह थी. बीते तीन दशकों से वे इन लक्षणों के साथ जी रहे थे और बरसों उन्होंने “अजीब किस्म का बच्चा" कहलाने का दंश झेला था. उनकी वाक्शक्ति दूसरों जैसी ही नॉर्मल थी, इसलिए किसी को ज्यादा शक न हुआ. मगर फिर उनकी पत्नी ने उनके इस बर्ताव के बारे में जानकारियां जुटाईं और इस नतीजे पर पहुंचीं कि उन्हें मदद की जरूरत है. राकेश कहते हैं, “पत्नी ने मेरे भीतर छिपी स्वाभाविक जरूरतों को सामने लाने में मदद की. उसी से डॉक्टर को समझने में मदद मिली कि मैं ऑटिस्टिक था."
ऑटिज्म असल में न्यूरोडेवलपमेंट डिसऑर्डर यानी तंत्रिका विकास से जुड़ा विकार है जो सामाजिक मेलजोल और संवाद के क्षमता पर असर डालता है. लंबे समय से न तो इसकी ठीक से पहचान की गई और न ही इस पर ध्यान दिया गया क्योंकि यह कोई विकार नहीं बल्कि कई लक्षणों का जोड़ है. यह भी जरूरी नहीं कि दो ऑटिस्टिक व्यक्तियों में लक्षण एक जैसे हों. इसलिए रोग की पहचान हरेक ऑटिस्टिक व्यक्ति के लक्षणों को दर्शाने वाले स्पेक्ट्रम यानी सतरंगी फलक पर की जाती है. इसी वजह से इसका औपचारिक नाम ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर या एएसडी पड़ा. गंभीर ऑटिस्टिक व्यक्तियों को दौरे पड़ सकते हैं, हिंसा के दौर आ सकते हैं या बोलना दूभर हो सकता है, जबकि बाकी दूसरों में हल्के और ज्यादा बारीक लक्षण हो सकते हैं, जैसे मुस्कराने से परहेज करना और आंखें मिलाने से कतराना, कुछ खास गंध या ध्वनियों के प्रति अरुचि, हाथ लहराना या बार-बार असामान्य हरकतें करना (उन्हीं हरकतों या आवाजों को दोहराना), या दूसरे बच्चों के साथ न घुलना-मिलना.
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परदेस में परचम
भारतीय अकादमिकों और अन्य पेशेवरों का पश्चिम की ओर सतत पलायन अब अपने आठवें दशक में है. पहले की वे पीढ़ियां अमेरिकी सपना साकार होने भर से ही संतुष्ट हो ती थीं या समृद्ध यूरोप में थोड़े पांव जमाने का दावा करती थीं.
भारत का विशाल कला मंच
सांफ्ट पावर से लेकर हार्ड कैश, हाई डिजाइन से लेकर हाई फाइनेंस आदि के संदर्भ में बात करें तो दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह भारत की शीर्ष स्तर की कला हस्तियां भी भौतिक सफलता और अपनी कल्पनाओं को परवान चढ़ाने के बीच एक द्वंद्व को जीती रहती हैं.
सपनों के सौदागर
हम ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां मनोरंजन से हौवा खड़ा हो है और उसी से राहत भी मिलती है.
पासा पलटने वाले महारथी
दरअसल, जिंदगी की तरह खेल में भी उतारचढ़ाव का दौर चलता रहता है.
गुरु और गाइड
अल्फाज, बुद्धिचातुर्य और हास्यबोध उनके धंधे के औजार हैं और सोशल मीडिया उनका विश्वव्यापी मंच.
निडर नवाचारी
खासी उथल-पुथल मचा देने वाली गतिविधियों से भरपूर भारतीय उद्यमिता के क्षेत्र में कुछ नया करने वालों की नई पौध कारोबार, टेक्नोलॉजी और सामाजिक असर पैदा करने के नियम नए सिरे से लिख रही है.
अलहदा और असाधारण शख्सियतें
किसी सर्जन के चीरा लगाने वाली ब्लेड की सटीकता उसके पेशेवर कौशल की पहचान होती है.
अपने-अपने आसमान के ध्रुवतारे
महानता के दो रूप हैं. एक वे जो अपने पेशे के दिग्गजों के मुकाबले कहीं ज्यादा चमक और ताकत हासिल कर लेते हैं.
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ढर्रा-तोड़ो या फिर अपना ढर्रा तोड़े जाने के लिए तैयार रहो. यह आज के कारोबार में चौतरफा स्वीकृत सिद्धांत है. प्रतिस्पर्धा से प्रेरित होकर भारत के सबसे ताकतवर कारोबारी अगुआ अपने साम्राज्यों को मजबूत कर रहे हैं. इसके लिए वे नए मोर्चे तलाश रहे हैं, गति और पैमाने के लिए आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस सरीखे उथल-पुथल मचा देने वाले टूल्स का प्रयोग कर रहे हैं और प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए नवाचार बढ़ा रहे हैं.
देश के फौलादी कवच
लबे वक्त से माना जाता रहा है कि प्रतिष्ठित शख्सियतें बड़े बदलाव की बातें करते हुए सियासी मैदान में लंबे-लंबे डग भरती हैं, वहीं किसी का काम अगर टिकता है तो वह अफसरशाही है.