मुंबई के लोअर परेल में चारों ओर इमारतों से भरे इलाके में विशालकाय खंभे की तरह निकली 20 मंजिला कांच की बिल्डिंग वन वर्ल्ड सेंटर. इसी में बैठीं फिल्मकार पायल कपाडिया गहरे उतार-चढ़ावों से गुजर रही हैं. ठीक अपनी फिल्मों के किरदारों की तरह. मुंबई में जन्मी और यहीं रह रही 38 वर्षीया फिल्मकार को पता है कि वे उसी मिल की जमीन के टुकड़े पर खड़ी इमारत में बैठी हैं जहां बने घर को उनकी फिल्म ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट की एक किरदार को अंततः गंवाना पड़ा था. वे कहती हैं, "मैं प्रगति के खिलाफ नहीं हूं और किसी भी तरह अतीत से चिपकी रहना नहीं चाहती, लेकिन कभी यहां रह और काम कर चुके लोग अब इस जगह तक नहीं पहुंच सकते. पब्लिक स्पेस इस तरह से खो देना मुझे परेशान करता है. यही वह पहली चीज है जो शहर का विकास होने पर भेंट चढ़ती है.
कपाडिया इन दिनों पब्लिसिटी पर निकली हैं.
करीब पांचेक महीने से यह सिलसिला चल रहा है. तभी से जब मई में ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट ने कान फिल्म फेस्टिवल में ग्रैंड ज्यूरी प्राइज जीता और वे इस प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह का दूसरा सबसे बड़ा अवार्ड जीतने वाली पहली भारतीय फिल्मकार बनीं. इस बीच कपाडिया पहली बार अमेरिका गईं, जहां प्रतिष्ठित टेलुराइड फिल्म फेस्टिवल में उनकी यह फिल्म दिखाई गई; टाइम 100 नेक्स्ट समारोह में शरीक हुईं; और क्राइटेरियन वीडियो लाइब्रेरी घूमीं, जो किसी भी स्वतंत्र फिल्मकार का सपना होता है. राणा डग्गूबाती की स्पिरिट मीडिया ने इस स्वतंत्र फिल्म के वितरण अधिकार हासिल किए, जिसकी बदौलत यह 22 नवंबर को अंततः सिनेमाघरों में पहुंच रही है. वे कहती हैं, " फिल्म को मिल रही हर चीज पर मुझे सुखद आश्चर्य है. फिल्म निर्माण में... काश मैं कह पाती कि कुछ गारंटी है, पर (यहां) कभी कोई गारंटी नहीं. यह किसी दूसरे फेस्टिवल में भी जा सकती थी जहां इस पर इतना ध्यान नहीं दिया जाता. समितियों में लोग ही तो होते हैं और उनकी प्रतिक्रिया के बारे में आप कुछ नहीं कह सकते.
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