इतना कि कोई भी गगनचुंबी इमारतों की गिनती कर सकता था. लेकिन इन दिनों समुद्र के किनारे जाएं तो ऐसा लगता है मानो वह घने धुंध और कोहरे के बीच दिखने के लिए संघर्ष कर रहा हो. मानो वह हवा के लिए तकरीबन हांफ रहा है. आज के मुंबईकरों की तरह जो शहर में लगातार निर्माण गतिविधियों और प्रदूषक के बढ़ते स्तर के साथ-साथ हवा के पैटर्न में आए बदलाव की वजह से घुटन महसूस करने के लिए मजबूर हो गए हैं. यहां की हवा एक दिन में करीब पांच से छह सिगरेट पीने जितनी जहरीली हो गई है. असल में, स्विस फर्म आइक्यूएयर के मुताबिक, इस साल फरवरी में मुंबई को दुनिया का दूसरा सबसे प्रदूषित शहर बताया गया था.
पिछले एक दशक में मुंबई की हवा की औसत गुणवत्ता में सामान्य गिरावट आई है, लेकिन पिछले साल इसकी स्थिति खासकर खराब हुई है. अक्तूबर में शहर के अंधेरी और मझगांव सरीखे कुछ इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआइ) 300 पार कर गया, जबकि सायन और बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स में एक्यूआइ 200 से अधिक दर्ज किया गया. दरअसल, 0-50 एक्यूआइ अच्छा, 51-100 संतोषजनक, 101-200 औसत, 201-300 खराब, 301-400 बहुत खराब और 400 से अधिक गंभीर माना जाता है. सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी ऐंड वेदर फोरकास्टिंग ऐंड रिसर्च (एसएफएआर) के आंकड़ों के मुताबिक, नवंबर 2022 और जनवरी 2023 के दौरान 92 दिनों में से 66 दिन एक्यूआइ को खराब और बहुत खराब दर्ज किया गया. वहीं पिछले तीन वर्ष में उसी दौरान ऐसे दिनों की संख्या महज 28 थी. नागरिक निकाय को अक्तूबर में करीब आठ जगहों पर धूल मशीन लगानी पड़ी, वहीं मरीन ड्राइव पर आने वालों का स्वागत ऐंटी-स्मॉग गन से किया गया. 20 अक्तूबर को बिगड़ती एक्यूआइ स्तर की वजह से बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के आयुक्त आइ. एस. चहल को सभी हितधारकों के साथ बैठक बुलानी पड़ी.
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सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"